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India US Relations: चीन के खिलाफ अमेरिकी कथनी-करनी में बड़ा अंतर, भारत को वैश्विक स्तर पर कमजोर करने की कोशिश तो नहीं?

India US Relations: उम्मीद से उलट डॉनल्ड ट्रंप अमेरिका के दोबार राष्ट्रपति बनने के बाद से लगातार भारत विरोधी बयान दे रहे हैं और चीन के खिलाफ उनके कथनी-करनी में जो अंतर दिख रहा है, उससे लगता है कि क्या वो वैश्विक स्तर पर भारत को कमजोर करने की कोशिश तो नहीं कर रहे हैं?

India US Relations
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India US Relations: भारत से लेकर अमेरिका तक कूटनीति और विदेश नीति की समझ रखने वाले जानकार ये देखकर हैरान हैं कि हर दिन अमेरिकी राष्ट्रपति डॉनल्ड ट्रंप (Donald Trump) भारत में अस्थिरता पैदा करने वाले बयान क्यों दे रहे हैं। एक के बाद एक उन्होंने भारत को राजनीतिक तौर पर अस्थिर करने वाले बयानों का ट्रेंड शुरू कर दिया है।

पहले बयान में उन्होंने कहा कि ‘हमें भारत में 21 मिलियन अमेरिकी डॉलर यानि 182 करोड़ रुपए वोटर टर्नआउट के लिए खर्च करने की क्या जरूरत है। मुझे लगता है कि बाइडेन प्रशासन, भारत में किसी और निर्वाचित करने की कोशिश कर रहा था। हमें भारत सरकार को बताना होगा।’

अपने दूसरे बयान में वो कहते हैं कि ‘हम भारत में वोटर टर्नआउट की चिंता क्यों कर रहे हैं। हमारे पास पहले से बहुत सारी समस्याएं हैं।’ शनिवार को अपने तीसरे बयान में उन्होंने सीधे प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नाम लेते हुए कहा कि ‘मेरे मित्र प्रधानमंत्री मोदी और भारत को वोटर टर्नआउट के लिए 21 मिलियन डॉलर दिए जा रहे हैं। हम भारत में मतदान के लिए 21 मिलियन डॉलर दे रहे हैं। हमारा क्या। मैं भी तो मतदान बढ़ाना चाहता हूं।’

भारत को बार-बार टेंशन देने वाले बयान क्यों?

इसके अलावा ट्रंप का एक और बयान है जिसने भारत के सियासी गलियारों में उथल-पुथल मचा दी है उसके केंद्र में ईवीएम है जिसे 2014 के बाद से विपक्षी पार्टियां हर बार शक की नजर से देखती रही हैं और ईवीएम भारत की राजनीति में एक बड़ा मुद्दा बन चुकी है। ट्रंप ने शनिवार को एक कार्यक्रम में कहा कि ‘इलॉन मस्क ने मुझसे कहा था कि मशीनें वोटिंग के लिए नहीं बनी है. वो इसके लिए सही नहीं है. इसके अलावा एमआईटी के एक प्रोफ़ेसर ने भी कहा था कि चुनाव के लिए पेपर बैलट ही सही हैं’

चीन के खिलाफ अमेरिका की कथनी-करनी में बड़ा अंतर?

हालिया बयान उस रिपोर्ट के बाद सामने आया है जिसके मुताबिक 21 मिलियन डॉलर की फंडिंग भारत के लिए बल्कि बांग्लादेश के लिए मंजूर की गई थी। गौर करने वाली बात ये है कि एक तरफ वो बार-बार भारत को असहज करने वाले बयान दे रहे हैं। दूसरी तरफ चीन को लेकर अपने रूख से पलटते नजर आ रहे हैं। राष्ट्रपति ट्रंप के कार्यकाल की शुरुआत से ही पूरी दुनिया में ट्रेड वॉर की अटकलें लग रही हैं।

डॉनल्ड ट्रंप ब्रिक्स समेत कई देशों को टैरिफ बढ़ाने की धमकी दे रहे हैं। हालांकि चीन के प्रति उन्होंने शुरू में जो सख्ती दिखाई थी अब उससे पीछे हटते नजर आ रहे हैं। ट्रंप प्रशासन ने चीनी सामान के आहायात पर सिर्फ 10 प्रतिशत टैरिफ लगाने का फैसला किया है। इससे इतर भारत की बात की जाए तो वो रेसिप्रोकल यानि जैसे को तैसा वाले सिद्धांत पर चल रहे हैं।

ट्रंप की तरफ से टैरिफ वाली टेंशन को देखते हुए भारत, मस्क की कंपनी टेस्ला के लिए अपनी नीतियों में बदलाव के लिए तैयार हो गया है। वहीं ट्रंप ने ब्रिक्स देशों को धमकी दी है कि अगर वो डॉलर के विकल्प के तौर पर अपनी इंटरनेशनल मुद्रा या करेंसी विकसित करते हैं तो उन्हें गंभीर परिणाम भुगतने होंगे। भारत भी ब्रिक्स समूह का अहम सदस्य देश है।

वैश्विक स्तर पर भारत को कमजोर करने की कोशिश?

यहां एक और घटना का जिक्र करना जरूरी है। ये घटना यूक्रेन वॉर से जुड़ी है जिसमें अब खुद ट्रंप, रूस के साथ युद्ध रोकने के उपायों पर काम कर रहे हैं। सऊदी अरब में अमेरिकी और रूस के विदेश मंत्री की मुलाकात भी हो चुकी है। ट्रंप प्रशासन यूक्रेन युद्ध का समाधान इस तरह निकालने पर विचार कर रहा है जिसमें रूस के हितों की अनदेखी नहीं की जाएगी।

डॉनल्ड ट्रंप, यूक्रेन के राष्ट्रपति वोलोदिमिर जेलेंस्की को डिक्टेटर या तानाशाह कह रहे हैं। यहां तक यूरोपियन यूनियन तक की नाराजगी झेल रहे हैं। एक वक्त था जब भारत भी यूक्रेन-रूस युद्ध में शांति की पहल कर रहा था और तत्कालीन अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडेन मध्यस्थ के तौर पर पीएम मोदी की मदद चाहते थे।

युद्ध की शुरुआत में जो वर्ल्ड ऑर्डर आकार ले रहा था उसमें अमेरिका, यूरोप यूक्रेन के साथ खड़े थे और चीन, उत्तर कोरिया जैसे देश रूस का समर्थन कर रहे थे और इस स्थिति में भारत तटस्थ रहकर शांति की बात कर रहा था। हालांकि आज भारत इस मुद्दे पर अलग-थलग पड़ता दिखाई दे रहा है। क्योंकि, ट्रंप प्रशासन भारत के मुकाबले रूस और चीन को ज्यादा तरजीह दे रहा है।

क्या वर्ल्ड ऑर्डर बदलना चाहते हैं ट्रंप?

ऐसे में भारत को इस विषय पर गंभीरता से सोचने की जरूरत है और ट्रंप प्रशासन को कड़ा जवाब देने की भी आवश्यकता है। क्योंकि ऐसा नहीं है कि सिर्फ भारत के हित ही अमेरिका के साथ जुड़े हैं बल्कि भारत, अमेरिका के लिए भी एक बड़ा बाजार है। साल 2023-24 में भारत और अमेरिका के बीच करीब 119.71 अरब डॉलर का व्यापार हुआ था।

ऐसे में ट्रंप कोई भी कदम अपनी मनमर्जी से नहीं उठा सकते। भारत सरकार को भी ट्रंप के सामने 140 करोड़ भारतीयों की ताकत दिखाने की जरूरत है। क्योंकि अगर भारत ने डॉनल्ड ट्रंप के अनर्गल बयानों और फैसलों को लेकर कोई प्रतिक्रिया नहीं की थी तो वैश्विक स्तर पर भारत की साख पर इसका प्रतिकूल असर पड़ने की प्रबल संभावना है।

अमित यदुवंशी (ये लेखक के अपने विचार हैं)

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