Science News: वैज्ञानिकों ने पहली बार ‘सुपरसॉलिड’ को गतिशील किया, यह खोज फिजिक्स के क्षेत्र में नई क्रांति की कर सकती है शुरुआत

Science News: वैज्ञानिकों ने पहली बार 'सुपरसॉलिड' नामक अनोखे पदार्थ को हिलाया है, जो न केवल ठोस है बल्कि तरल भी है। भौतिकविदों ने इससे आधी सदी पहले इस पदार्थ की 'सुपरसॉलिड' अवस्था के अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी।

Science News: हमारे बचपन में पदार्थ की तीन अवस्थाओं – ठोस, द्रव और गैस – के बारे में पढ़ा और सुना था। थोड़े बड़े हुए तो यह भी सीखा कि एक और अवस्था, ‘प्लाज्मा’, भी होती है। लेकिन 50 साल पहले, वैज्ञानिकों ने एक नई अवस्था, ‘सुपरसॉलिड’, के अस्तित्व की भविष्यवाणी की थी। यह अवस्था न केवल ठोस होती है, बल्कि तरल भी होती है। बुधवार को वैज्ञानिकों ने घोषणा की कि उन्होंने पहली बार ‘सुपरसॉलिड’ को हिलाने में सफलता प्राप्त की है, जो इस पदार्थ की दोहरी प्रकृति का स्पष्ट प्रमाण है।

सुपरसॉलिड एक नया रूप

वैज्ञानिकों ने पदार्थ की उन अवस्थाओं का अध्ययन किया है, जो बेहद ठंडे तापमान पर बनती हैं और शून्य के पास पहुंच जाती हैं। इन चरम स्थितियों में पदार्थ ऐसा व्यवहार करता है जो सामान्य परिस्थितियों से पूरी तरह अलग होता है।

सुपरफ्लुइड से सुपरसॉलिड तक

तरल पदार्थ (फ्लुइड) अपने प्रवाह में अधिक या कम प्रतिरोध करते हैं, जिसे चिपचिपाहट से मापा जाता है। उदाहरण के तौर पर, शहद पानी से अधिक चिपचिपा होता है। वहीं, सुपरफ्लुइड वह पदार्थ होता है, जिसमें चिपचिपाहट न के बराबर होती है, यानी यह बिना किसी प्रतिरोध के बहता है। अगर इसे कप में हिलाया जाए, तो यह कभी धीमा हुए बिना अनंत काल तक बहता रहेगा।

सुपरसॉलिड की अद्भुत प्रकृति

पिछली सदी में वैज्ञानिकों ने ‘सुपरसॉलिड’ की अवधारणा पेश की थी। यह पदार्थ ठोस और सुपरफ्लुइड दोनों गुणों का मिश्रण होता है। इसमें परमाणुओं का एक हिस्सा ठोस क्रिस्टल संरचना के रूप में होता है, जिससे यह घर्षण-मुक्त बहता है। इस अवस्था में पदार्थ के गुण एक अजीब रूप से संयोजित होते हैं।

पहली बार सुपरसॉलिड को हिलाकर देखा

रिसर्चर्स ने अब तक सुपरसॉलिड्स में इन क्रिस्टल संरचनाओं को विभिन्न तरीकों से देखा था, लेकिन इसका प्रवाह सीधे तौर पर देखा नहीं जा सकता था। अब, इन्सब्रुक यूनिवर्सिटी के फिजिसिस्ट फ्रांसेस्का फेरलैनो के नेतृत्व में वैज्ञानिकों ने एक अध्ययन में इस कमी को पूरा किया। फेरलैनो ने बताया कि उनकी टीम ने ‘क्वांटाइज्ड वोर्टिस’ नामक छोटे भंवरों को देखने के लिए सुपरसॉलिड को हिलाया, जो सुपरफ्लुइडिटी के सिद्धांत का एक महत्वपूर्ण प्रमाण है।

लैब में देखेंगे सुपरनोवा जैसी घटनाएं

2021 में इन्सब्रुक यूनिवर्सिटी की टीम ने एक लंबी अवधि तक चलने वाला, टू-डायमेंशनल सुपरसॉलिड विकसित किया था। इसके बाद, अगले कदम के तौर पर इसे हिलाकर देखा गया। वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग में चुंबकीय क्षेत्रों का इस्तेमाल किया, जिससे वे लैब में उन घटनाओं का सिमुलेशन करने में सक्षम हो पाएंगे, जो सामान्य परिस्थितियों में नहीं होतीं, जैसे कि न्यूट्रॉन तारों के केंद्र में होने वाली घटनाएं।

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