उत्तराखंड में UCC बिल पेश! हिंदू-मुसलमानों के लिए एक जैसा होगा कानून, बहु विवाह और हलाला पर रोक

UCC पर अधिनियम बनाकर उसे प्रदेश में लागू करना 2022 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा जनता से किए गए प्रमुख वादों में से एक था

उत्तराखंड (Uttarakhand) के मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी (Pushkar Singh Dhami) ने राज्य विधानसभा में मंगलवार (6 फरवरी) को बहुप्रतीक्षित समान नागरिक संहिता (UCC) विधेयक पेश कर दिया। यूनिफॉर्म सिविल कोड में बहुविवाह और ‘हलाला’ जैसी प्रथाओं को आपराधिक कृत्य बनाने तथा ‘लिव-इन’ में रह रहे कपल्स के बच्चों को जैविक बच्चों की तरह उत्तराधिकार दिए जाने का प्रावधान है। UCC विधेयक को पारित कराने के लिए बुलाए गए विधानसभा के विशेष सत्र के दूसरे दिन पेश ‘समान नागरिक संहिता, उत्तराखंड-2024’ विधेयक में धर्म और समुदाय से परे सभी नागरिकों के लिए विवाह, तलाक, उत्तराधिकार, संपत्ति जैसे विषयों पर एक समान कानून प्रस्तावित है।

UCC पर अधिनियम बनाकर उसे प्रदेश में लागू करना 2022 में हुए विधानसभा चुनावों के दौरान भारतीय जनता पार्टी (BJP) द्वारा जनता से किए गए प्रमुख वादों में से एक था। वर्ष 2000 में अस्तित्व में आए उत्तराखंड में लगातार दूसरी बार जीत दर्ज कर इतिहास रचने के बाद BJP ने मार्च 2022 में सत्ता संभालने के साथ ही मंत्रिमंडल की पहली बैठक में यूसीसी का मसौदा तैयार करने के लिए विशेषज्ञ समिति के गठन को मंजूरी दे दी थी। कानून बनने के बाद उत्तराखंड आजादी के बाद यूनिफॉर्म सिविल कोड (UCC) लागू करने वाला देश का पहला राज्य होगा। गोवा में पुर्तगाली शासन के दिनों से ही यूसीसी लागू है।

बिल की बड़ी बातें

– बिल के दायरे से प्रदेश में निवासरत अनुसूचित जनजातियों को बाहर रखा गया है। विधेयक में बहु विवाह पर रोक लगाई गई है। इसमें कहा गया है कि एक पति या पत्नी के जीवित रहते कोई नागरिक दूसरा विवाह नहीं कर सकता। इसमें यह भी प्रस्तावित है कि असाधारण कष्ट की स्थिति को छोड़कर कोर्ट में तलाक की कोई भी अर्जी तब तक प्रस्तुत नहीं की जाएगी जब तक कि विवाह हुए एक वर्ष की अवधि पूरी न हुई हो।

– विधेयक में मुस्लिम समुदाय में तलाकशुदा पत्नी के लिए प्रचलित ‘हलाला’ को प्रतिबंधित करने के साथ ही उसे आपराधिक कृत्य घोषित करते हुए उसके लिए दंड का प्रावधान किया गया है। इसके अलावा, विधेयक में लिव-इन में रह रहे जोड़ों की सूचना आधिकारिक रूप से देना जरूरी बनाते हुए जोड़ों के बच्चों को जैविक बच्चों की तरह उत्तराधिकार देना प्रस्तावित है।

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– विधेयक में कहा गया कि अगर एक माह के भीतर ‘लिव-इन’ में रहने की सूचना नहीं देने पर तीन माह की कैद या 10 हजार रुपये का जुर्माना या दोनों दंड प्रभावी होंगे। इस संबंध में गलत सूचना देने पर भी दंड का प्रावधान किया गया है। ‘लिव-इन’ में रहने वाली महिला को अगर उसका पुरूष साथी छोड़ देता है तो वह उससे गुजारा-भत्ता पाने का दावा कर सकती है।

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