रानी पद्मावती ही नहीं, यह गवाह है राणाओं की वीरगाथाओं का भी। मीराबाई की प्रेम और भक्ति में डूबी कहानियां भी बसती है यहां।
मेवाड़ की इस भूमि ने कई प्रतापी राजाओं का काल देखा जिसमें प्रमुख हैं राणा कुंभा, राणा सांगा और महाराणा प्रताप।
यह किला मछलीनुमा है जो कि यह किला विशाल दुर्ग 700 एकड़ में फैला है। इस दुर्ग में पहुंचने के लिए पूरे सात दरवाजे पार करने होते हैं।
इन दरवाज़ों को यहां पोल कहा जाता है, जैसे- भैरव पोल, पांडव पोल, गणेश पोल, हनुमान पोल, लक्ष्मण पोल, राम पोल और जोड़ला पोल आदि।
राणा कुंभा महल किले में पाई जाने वाली सबसे प्राचीन संरचना है। महाराणा कुंभा मेवाड़ के प्रतापी राजाओं में से अग्रिम कहे जाते हैं।
चित्तौडग़ढ़ के नजदीक ही एक विशाल मेनाल जल प्रपात है जो अपने पूरे वेग से 50 फीट की ऊंचाई से गिरता है।
चित्तौडग़ढ़ दुर्ग की पहचान के रूप में जाना जाने वाला विजय स्तंभ है। इसका निर्माण महाराणा कुंभा ने सन् 1438 में करवाया था।
यहां मीराबाई को समर्पित संरचना है जिसका नाम मीराबाई का मंदिर है। इसका निर्माण भी महाराणा कुंभा ने ही करवाया था।
चित्तौडग़ढ़ के विशाल दुर्ग में एक संग्रहालय है जहां पुरातात्विक महत्व के कुछ दुर्लभ नमूने संरक्षित रखे गए हैं।
इनमें गुप्त और मौर्य काल से लेकर जैन और हिंदू संस्कृति से जुड़े शिलालेख और मूर्तियां तक शामिल हैं।
यूनेस्को ने चित्तौडग़ढ़ दुर्ग को वर्ष 2012 में विश्व धरोहर सूची में शामिल कर लिया था।
यहां जाने के लिए उदयपुर सबसे नजदीकी एयरपोर्ट है। एयरपोर्ट से आगे टैक्सी से चित्तौडग़ढ़ करीब 2 घंटे की सड़क दूरी पर है।
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