Aarti Rule And Value: आरती बहुत प्राचीन शब्द है। आरती के महत्व की चर्चा सबसे पहले “स्कंद पुराण” में की गई है। इसका मतलब है कि किसी भी देवता की पूजा करने के बाद भगवान के आशीर्वाद को लयबद्ध तरीके उनकी स्तुति करना और उन्हें धन्यवाद करना है। आरती की प्रक्रिया में एक थाली में एक बत्ती और कुछ विशेष वस्तुएं रखकर भगवान के सामने दाहिने हाथ की ओर घुमाया जाता है। आरती की थाली में रखी हर वस्तु का अपना-अपना महत्व होता है। ऐसा माना जाता है कि जिस घर में सुबह और शाम के समय आरती होती है, उस घर में भगवान का वास होता है
Aarti ke Niyam Aur Mahatva: आइए जानते है आरती करने का सही तरीका और महत्व
आरती का महत्व
स्कंद पुराण के अनुसार भगवान विष्णु ने कहा है कि जो व्यक्ति घी के दीपक से आरती करता है वह करोड़ों युगों तक स्वर्ग में निवास करता है। ऐसा भी कहा जाता है कि जो मनुष्य मेरे सामने आरती होते हुए देखता है उसे परम गति की प्राप्ति होती है। ऐसा वर्णन है कि यदि कोई व्यक्ति कपूर से आरती करता है तो उसे अनंत काल में प्रवेश मिलता है।
आरती करने के नियम
ध्यान रखें कि यदि दीपक से आरती करें तो वह पंचमुखी होना चाहिए। इसके साथ ही थाली में पूजा के फूल, रोली, अक्षत, प्रसाद आदि भी रखें। आरती की थाली को ॐ के आकार में घुमाना चाहिए। आरती करते समय सावधानी बरतें। कि आरती भगवान के चरणों में चार बार, नाभि में दो बार, चेहरे पर एक बार और पूरे शरीर पर सात बार करनी चाहिए।
– आरती होने के बाद आरती को पानी से धोएं और उस जल को दोनों हाथों से अन्य लोगों पर छिड़कें।
– इसे दीपक की लौ के चारों ओर लाकर माथे पर लगाएं। इस प्रकार आरती करने से घर में नकारात्मकता नहीं आती और वास्तु दोष भी समाप्त हो जाते हैं।
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