Makar Sankranti: मकर संक्रांति पर क्यों बनाई जाती है खिचड़ी, जानिए शनि देव की कथा

Makar Sankranti: मकर संक्रान्ति के दिन शनि देव को प्रसन्न करने के लिए ही खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। क्योंकि शनि देव को काली उड़द की दाल पसंद है।

Makar Sankranti: मकर संक्रांति का पर्व देश भर में उल्लास से मनाया जाता है। मकर संक्रांति के दिन रंग बिरंगी पतंगे आसमान में ऊंची उड़ने भरती है। साथ इस दिन खिचड़ी खाने और दान करने का विशेष महत्व है। इसके पीछे शनि देव की यह कथा प्रचलित है। वास्तव में मकर संक्रांति पिता और पुत्र के मिलन का दिन है। इस दिन शनि देव को प्रसन्न करने के लिए काली दाल की खिचड़ी दान की जाती है और खाई जाती है। आईए जानते हैं कि मकर संक्रांति पर खिचड़ी बनाने के पीछे क्या महत्व है…

शनि देव की कथा

पौराणिक मान्यताओं के अनुसार सूर्यदेव शनिदेव के पिता हैं। मकर संक्रांति के दिन सूर्य देव अपने पुत्र शनि के घर जाते हैं जहां के एक महीने तक रहते हैं। शनिदेव मकर और कुंभ राशि के स्वामी हैं। सूर्य देव जब मकर राशि पर प्रवेश करते हैं तो उसी क्षण को मकर संक्रांति कहते हैं। क्योंकि मकर राशि में शनि देव जी का वास होता है। जिस दिन सूर्य देव जी अपने पुत्र शनि देव से मिलने के लिए जाते हैं, उसी दिन को मकर संक्रांति कहते हैं। शनि देव जी अपने पिता सूर्य देव से नाराज रहते थे, इसलिए सूर्य देव जी उनसे मिलने के जाते हैं।

खिचड़ी भोग से प्रसन्न होते हैं शनि देव

शनि देव अपने पिता सूर्य देव द्वारा अपमानित किए गए थे। इसलिए जब सूर्य भगवान जब मकर राशि में शनि देव से मिलने जाते हैं, तो शनि देव का क्रोध शांत करने के लिए उन्हें प्रसन्न किया जाता है। इसलिए मकर संक्रान्ति के दिन शनि देव को प्रसन्न करने के लिए ही खिचड़ी का भोग लगाया जाता है। क्योंकि शनि देव को काली उड़द की दाल पसंद है।

खिचड़ी खाने से शांत होते हैं ग्रह

ज्योतिषाचार्य ने बताया कि धार्मिक मान्यताओं के अनुसार मकर संक्रांति की खिचड़ी चावल, काली दाल, हल्दी, मटर और हरी सब्जियों का विशेष महत्व है। खिचड़ी के चावल से चंद्रमा और शुक्र की शांति का महत्व है। साथ ही इससे कुंडली में अशुभ ग्रहों का प्रभाव नष्ट हो जाता है औ शनि देव की कृपा भी साधक पर बनी रहती है। इसलिए मकर संक्रांति पर खिचड़ी खाने से व्यक्ति को सेहत का आशीर्वाद मिलता है।

खिचड़ी की यह कथा भी है प्रचलित

एक समय बाबा गोरखनाथ जी के आश्रम में भोजन कम होने की वजह से सब भूखे ही दो जाते थे। ऐसे में भोजन न मिलने से वे कमजोर होते जा रहे थे। उस समय बाबा गोरखनाथ ने दाल, चावल और सब्जियों को एक साथ मिलाकर पकाने की सलाह दी। ये आसानी से जल्‍दी पक जाता था और इससे शरीर को पोषक तत्‍व भी मिल जाते थे और यो‍गियों का पेट भी भर जाता था। बाबा गोरखनाथ ने इस व्यंजन का नाम खिचड़ी रखा। यही कारण है कि आज भी मकर संक्रांति के पर्व पर गोरखपुर में स्थित बाबा गोरखनाथ के मंदिर के पास खिचड़ी का मेला लगता है।

तमाम खबरों के लिए हमें Facebook पर लाइक करें Twitter , Kooapp और YouTube  पर फॉलो करें। Vidhan News पर विस्तार से पढ़ें ताजा-तरीन खबरे

- Advertisement -

Related articles

Share article

- Advertisement -

Latest articles