Sankasthi Ganesh Chauth: गणेश संकष्टी चौथ व्रत की कथा- जब कट गया था बालक गणेश का मुख….

Sankasthi Ganesh Chauth: संकष्टी गणेश चौथ व्रत की पौराणिक कथा गणेश जी से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश पर संकट आकर टल गया था, इसलिए इस दिन को संकष्टी गणेश चौथ के तौर पर मनाते हैं।

Sankasthi Ganesh Chauth: आज गणेश संकष्टी चतुर्थी है। आज महिलाएं संकष्टी गणेश चौथ का व्रत कर रही हैं। माघ मास की चर्तुर्थी को हर साल यह व्रत रखा जाता है। इस व्रत को तिल चतुर्थी और माघी चतुर्थी के नाम से भी जाना जाता है। इस व्रत में भगवान गणेश और चंद्र देवता की पूजा की जाती है। इस व्रत को करने के पीछे की मान्यता है कि यह व्रत माताएं अपने संतानों की दीर्घ आयु और जीवन में आने वाली सभी समस्याओं से बचाने के लिए रखती हैं। इस व्रत पर माताएं निर्जला ही रखतीं हैं। ऐसे में आइए जानते हैं इस व्रत की कथा…

कब करें संकष्टी गणेश चौथ पूजन 

संकष्टी गणेश चौथ का व्रत माघ मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्थी तिथि को किया जाता है। यह तिथि 29 जनवरी को सुबह 6 बजकर 10 मिनट से शुरू होगी और 30 जनवरी को सुबह 8 बजकर 55 मिनट पर समाप्त होगी।

संकष्टी गणेश चौथ पूजन की विधि

इस दिन संकष्टी व्रत के पूजा विधान पर पूरा दिन उपवास किया जाता है और शाम की पूजा के बाद ही खाना खाते हैं। वहीं स्नान करने के बाद गणेशजी की पूजा की जाती है। गणेश जी के मंत्रों का उच्चारण कर पूरे दिन खाने और पानी के बिना उपवास रख जाता है। इसके बाद चंद्रोदय के बाद शाम को पूजा की जाती है। शाम को पूजा करने के लिए गणेश की पत्थर की मूर्ति बनाते हैं और क्योंकि इस पूजा में दुर्गा जी की पूजन का भी काफी महत्व होता है इसलिए गणेश जी की मूर्ति के साथ दुर्गा जी का मूर्ति या तस्वीर रखें।

तिल गुड़ का चढ़ाएं प्रसाद

इसके बाद भगवान गणेश को पुष्प, धूप, दीपक, अगरबत्ती के साथ केला और प्रसाद अर्पित करें। साथ ही हो सके तो गणेश जी के प्रिय मोदक भी अर्पित करें। इस दिन तिल और गुड़ का मोदक बनाए और गणेश जी की कहानी सुनकर आरती करके प्राथना कर चंद्रमा को जल अर्पित कर पूजा करें। चावल चन्द्रमा की दिशा में चढ़ाएं। पूजा पूरी होने पर प्रसाद हर किसी को दिया जाता है।

संकष्टी गणेश चौथ व्रत कथा

संकष्टी गणेश चौथ व्रत की पौराणिक कथा गणेश जी से जुड़ी हुई है। मान्यता है कि इस दिन भगवान गणेश पर संकट आकर टल गया था, इसलिए इस दिन को संकष्टी गणेश चौथ के तौर पर मनाते हैं। कथा के अनुसार एक बार माता पार्वती स्नान के लिए गयी थी और इस दौरान वह बालक गणेश को स्नान गृह की पहरेदारी के लिए बैठाकर गई हुईं थीं। इसके साथ ही उन्होंने बालक गणेश को आदेश दिया था कि वह किसी को भी अंदर आने न दें। इसके बाद माता की आज्ञा का पालन करते हुए गणेश जी स्नान गृह के बाहर पहरा देने लगे। तभी भगवान शिव माता पार्वती से मिलने के लिए स्नान गृह के बाहर पहुंचे और अंदर जाने लगे।

इस दौरान गणेश भगवान ने भगवान शिव को अंदर जाने से रोक दिया। इस बात को लेकर बालक गणेश और भगवान शिव में अनबन हो गयी। इस बात पर नाराज शिव भगवान ने अपने त्रिशूल से बालक गणेश की गर्दन काट दी। इसके साथ बाहर की आवाज सुनकर जब पार्वती जी बाहर आयी तो वहां का दृश्य देखकर दंग रह गई। वह अपने बेटे गणेश की गर्दन कटी देख घबरा गई और शिव से अपने बेटे के प्राण वापस लाने की मांग करने लगी। माता पार्वती की बात मानते हुए शिव ने गणेश को जीवन दिया, लेकिन गर्दन की जगह हाथी के बच्चे का सिर लगाना पड़ा। इसको लेकर गणेश चतुर्थी को सभी महिलाएं अपने बच्चों की सलामती के लिए व्रत रखतीं हैं।

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