Kartavirya Arjun: रावण को मिनटों में परास्त करने वाले कौन थे कार्तवीर्य अर्जुन, जाने त्रेता युग की ये अद्भुत कथा

Kartavirya Arjun: प्रत्येक सावन मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी तिथि को पद्मिनी एकादशी मनाई जाती है। इस साल पद्मिनी एकादशी 29 जुलाई को मनाई जाएगी। पद्मिनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु और माता लक्ष्मी की पूजा की जाती है। इस दिन व्रत रखने का भी महत्व माना जाता है। मान्यता के अनुसार इस दिन व्रत रखने से व्यक्ति के जीवन में सुख-समृद्धि आती है और वंश में भी वृद्धि होती है। इसी पद्मिनी एकादशी के ही व्रत का पुण्य पाकर रानी पद्मिनी को भगवान विष्णु के चक्र स्वरूप पुत्र की प्राप्ति हुई। क्या है इससे जुड़ी पौराणिक कथा आइए जानते हैं इस लेख में….

 

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पद्मिनी एकादशी व्रत से रानी ने प्राप्त किया अलौकिक पुत्र
त्रेता युग की बात है जब नर्मदा नदी के किनारे बसे माहिष्मती के सम्राट नरेश कृतवीर्य और रानी पद्मिनी ने पुत्र की प्राप्ति के लिए पद्मिनी एकादशी व्रत रखा था। इस व्रत के फल स्वरुप होने भगवान विष्णु के चक्र स्वरूप कार्तवीर्य अर्जुन की प्राप्ति हुई। उस काल में कार्तवीर्य अर्जुन इतने बलशाली और पराक्रमी थे कि उन्हें भगवान के सिवा और कोई भी नहीं हरा सकता था। उसी समय जब एक बार लंका नरेश रावण ने अपने अहंकार में आकर कार्तवीर्य से युद्ध किया तब उन्होंने उसे मिनटों में परास्त कर बंदी बना लिया था।

Ravan Defeated By Kartavirya Arjun
Kartavirya Arjun

 

क्यों हुआ कार्तवीर्य और रावण के बीच युद्ध
आदिकाल में जब एक बार कार्तवीर्य अपनी पत्नी के साथ नर्मदा नदी में स्नान कर रहे थे, तब उनकी भुजाओं से नर्मदा नदी के प्रवाह में बाधा आई जिसके कारण नदी का पानी किनारे से बहने लगा। इसके कारण वहीं पास में तपस्या कर रहे रावण की तपस्या भंग हुई है। इसके कारण रावण अत्यंत क्रोधित हो गया और गुस्से में कार्तवीर्य अर्जुन को युद्ध के लिए ललकारा। उसी समय कार्तवीर्य अर्जुन ने रावण को युद्ध में चंद मिनटों में ही परास्त कर बंदी बना लिया था।

 

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Ravan Defeated By Kartavirya Arjun
Ravan Defeated By Kartavirya Arjun

लंकेश के पिता ने कार्तवीर्य अर्जुन से की विनती
जब रावण के पिता को उसके बेटे के बंदी बनाए जाने के ख़बर का पता चला तो वे अत्यंत व्याकुल हो गए। वे जानते थे कि कार्तवीर्य अर्जुन नारायण के अस्त्र सुदर्शन का अवतार है, उनमें समस्त ब्रह्मांड का बल समाहित है। अपने बेटे को छुड़ाने के लिए रावण के पिता तुरंत माहिष्मती सम्राट के पास अपने बेटे को मुक्त करने की याचना लेकर पहुंचे। कार्तवीर्य अर्जुन बहुत पराक्रमी और प्रतापी थे। उन्होंने कोई भी अन्याय नहीं किया और लंका नरेश को तुरंत ही मुक्त कर दिया।

( यह ख़बर विधान न्यूज के साथ इंटर्नशिप कर रहे गौरव श्रीवास्तव द्वारा तैयार की गई है।) 

 

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