
Health Tips: आज के समय में प्लास्टिक हमारे जीवन का एक बहुत ही बड़ा हिस्सा बन चुका है। पानी पीने से लेकर खाने तक के समान में प्लास्टिक का इस्तेमाल होने लगा है। हम भी बड़े तसल्ली से प्लास्टिक के बोतल में पानी पीते हैं साथ थे लंच बॉक्स में भी आराम से खाना खाते हैं जबकि इन सभी चीजों में प्लास्टिक मौजूद होता है। प्रेग्नेंट महिलाओं को भूल कर भी प्लास्टिक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि इससे होने वाले बच्चों को ऑटिज्म का खतरा बढ़ जाता है। तो आईए जानते हैं इसको लेकर एक्सपर्ट की राय…
ऑटिज्म क्या है (Health Tips)
ऑटिज्म जिसे ऑटिज्म स्पेक्ट्रम डिसऑर्डर कहा जाता है। आपको बता दे कि यह एक न्यूरो डेवलपमेंट डिसऑर्डर है और इस कंडीशन में पीड़ित को पढ़ने लिखने और लोगों से मेलजोल बनाने में परेशानी आने लगती है। प्रेगनेंसी के दौरान आपको प्लास्टिक की चीजों का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए क्योंकि अगर आपके शरीर में प्लास्टिक जाएगा तो आपका बच्चा इस गंभीर बीमारी का शिकार हो जाएगा।
ऑटिज्म के कारण (Health Tips)
अनुवांशिक और पर्यावरणीय कारण
दिमाग के विकास को नियंत्रित करने वाले जीव में गड़बड़ी
गर्भावस्था के दौरान प्रदूषण कानों के संपर्क में आना
क्रोमोजोमल कंडीशन
प्रेगनेंसी के दौरान खाई गई कुछ दावों का साइड इफेक्ट
ऑटिज्म के लक्षण
ऑटिज्म से प्रभावित बच्चे आंखों से संपर्क बनाने में कठिनाई महसूस करते हैं।
चेहरे के भाव और शरीर की भाषा को समझने में परेशानी होती है।
लोगों से मिलने जुलने में बातचीत करने में दिक्कत हो सकती है।
बोलने में परेशानिया
आसमान्य बोलचाल।
एक ही शब्द को बार-बार रिपीट करना ।
किसी दूसरे की बात को समझने में परेशानी होना।
किसी भी काम में रुचि ना दिखाना।
किसी एक ही काम को रिपीट मोड पर करते जाना।
किसी एक ही चीज पर ध्यान टिकाए रहना।
क्या है ऑटिज्म का इलाज?
फिलहाल ऑप्टिज्म के लिए कोई भी इलाज कल की एजुकेशनल प्रोग्राम बिहेवियर थेरेपी के साथ-साथ स्किल ओरिएंटेड सेशन से बच्चों को इस बीमारी से निकलने में मदद मिलती है।
इस बीमारी से ग्रसित बच्चों से इस तरह करें बात
ऑटिज्म से पीड़ित बच्चों के साथ धीरे-धीरे और साफ आवाज में बात करें।
उनसे आसान भाषा में बात करें
शब्दों को तोड़ तोड़ कर बोलें ताकि उन्हें समझने में आसानी हो।
बच्चों से अगर बात कर रहे हैं तो उसका नाम बार-बार रिपीट करें ताकि बच्चा यह समझ पाए कि आप उनसे बात कर रहे हैं।
बातचीत के दौरान जवाब देने के लिए बच्चों को पर्याप्त समय दें।
बच्चे के सोने और जगनी का समय निर्धारित करें।
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