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Study Tips: अगर आपके बच्चे का पढ़ने में नहीं लगता है मन, तो अपनाए यह टिप्स, चंद दिनों में दिखेगा असर

Study Tips: कई बार ऐसा होता है बच्चों का पढ़ने में मन नहीं लगता है. कई तरह की कोशिश करने के बाद भी बच्चे पढ़ने में आनाकानी करते हैं. ऐसे में आप कुछ टिप्स को अपना कर बच्चों को पढ़ने के लिए उत्सुक बना सकते हैं.

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Study Tips: कई बार ऐसा होता है हम लाख कोशिश करते हैं फिर भी हमारे बच्चे का पढ़ने में मन नहीं लगता है. ऐसे में माता-पिता की परेशानियां बढ़ने लगती है. अगर आपके बच्चे का पढ़ने में मन नहीं लगता है तो आप कुछ टिप्स अपना सकते हैं और आपको कुछ दिनों में असर दिखेगा.

सराहना से बनेगा काम(Study Tips)

बच्‍चे नहीं पढ़ रहे तो उन्‍हें डांटने की बजाय समझाने की कोशिश करें। वे कुछ गलती करें, तो उसे समझाएं। बेजा न डांटें, छोटी छोटी बातें हों तो प्‍यार से समझाएं। बस अपने बच्चे को समय दें और उनके साथ बैठें व उनका होमवर्क कराने में उनकी मदद करें। ध्‍यान रहे उनकी छोटी-छोटी सफलता के लिए उनकी सराहना करेंगे तो वे आपकी तरफ खिंचेंगे। इस दौरान उनसे पूछें कि उनके स्कूल में क्या चल रहा है, इस बारे में भी उनसे जी भरके बात करें।

नींद तो हुई है न पूरी

बच्चे का पढ़ाई में मन न लगने का एक कारण हो सकता है कि उनकी नींद पूरी न हो रही हो। इसलिए भी उनका मन उजाट हो रहा हो। पढ़ाई के दौरान सो रहे हों और आप सोचें कि मन नहीं लगता इसलिए सो रहा। ध्‍यान रहे बच्चे के स्वास्थ्य के लिए पर्याप्त नींद लेना जरूरी है। अगर बच्चे की नींद पूरी हो, तो एकाग्रता और शिक्षा के क्षेत्र में सुधार देखने को मिल सकता है। कम से कम 8 से 10 घंटे की नींद जरूरी है।

बेहतर होगा बच्चे का एक टाइमटेबल सेट कर दें। इससे बच्चे की जीवनशैली में भी सुधार होगा और उनके पास खेलने, पढ़ाई करने और सोने के लिए भी पर्याप्त समय होगा। अच्छी नींद के लिए पेरेंट्स बच्चों को सोते समय स्टोरी सुना सकते हैं। बिस्तर पर जाने के बाद बच्चे को मोबाइल, टी-वी और कंप्यूटर से दूर रखें। बच्चों का स्क्रीन टाइम सीमित रखें।

व्यायाम या योग भी कारगर

जी सही समझ रहे हैं आ। बच्चे की हेल्थ अच्छी होगी, तो वह पढ़ाई में पूरा मन लगा पाएंगे। डब्लूएचओ के अनुसार, एक्सरसाइज करने से बच्चे की पढ़ाई पर सकारात्मक प्रभाव पड़ता है। व्यायाम से एकाग्रता में भी सुधार हो सकता है ऐसे में बच्चे के हेल्दी रूटीन में व्यायाम या योग को शामिल करना उचित विकल्प हो सकता है। पर जरूरी नहीं कि यह एकदम से प्रभाव दिखाएं। इसलिए परिणाम की चिंता न करें। बच्‍चों के साथ रहकर उनके साथ आप भी करें थोड़ी कसरत।

डायट का हो ख्‍याल

बच्चे का पढ़ाई में मन लगाने के लिए उनकी डाइट का ध्यान रखना भी जरूरी है। बच्चों में पोषण की कमी का सीधा असर उनके शारीरिक और मानसिक विकास पर पड़ सकता है। बच्चों में हेल्दी फूड की जगह जंक फूड का चलन काफी बढ़ गया है। उचित पोषण न मिलने से वे चिड़चि‍ड़े हो रहे हैं। जंक फूड के सेवन से बच्चे कई बीमारी के शिकार भी हो सकते हैं। बच्चे को हेल्दी आहार जैसे फल, सब्जियां, दूध, अंडे आदि का सेवन कराएं।

खेलना भी है जरूरी

पढ़ाई करने के साथ-साथ बच्चों के लिए खेलना भी उतना ही जरूरी है। उनका मूड भी फ्रेश हो सकता है। ऐसे में पढ़ाई के साथ-साथ बच्चे के खेलने को भी पूरी अहमियत देना जरूरी है। बच्चे के मानसिक विकास के लिए बोर्ड गेम्स या बाहर खेलने वाली चीजों का सहारा ले सकते हैं। जिस तरह माता-पिता अपने बच्चों की पढ़ाई का समय निर्धारित करते हैं। ठीक उसी तरह उनके खेलने का समय भी तय कर दें।

घर का माहौल ठीक हो

बच्चे के सामने परिवार के सदस्यों का आपस में लड़ना उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बुरा असर डाल सकता है (10)। पारिवारिक समस्याएं कई बार बच्चे के डिप्रेशन का कारण बन सकती हैं। घर का माहौल ठीक न होना भी बच्चे का पढ़ाई में मन न लगने के कारणों में से एक हो सकता है। इसलिए बच्चे के सामने घर का माहौल अच्छा बनाकर रखें व उनके सामने झगड़ा या किसी प्रकार का बहस न करें।

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मार-पीट करना गलत

कुछ पेरेंट्स बच्चे के मन लगाकार पढ़ाई न करने से उन पर चिल्लाना या मारना-पीट करना शुरू कर देते हैं। ऐसा करना बिल्कुल गलत है। इससे बच्चा डिप्रेशन में जा सकता है। अवसाद का असर बच्चे की पढ़ाई पर भी हो सकता है। वे ज़िद्दी भी हो सकते हैं। ऐसे में डांटने की बजाय हमेशा बच्चे को प्यार से समझाएं। बच्चे के साथ पढ़ाई को लेकर किसी तरह की जोर जबरदस्ती न करें।

होम वर्क में मदद

बच्चों के होम वर्क में पेरेंट्स उनकी मदद कर सकते हैं। इससे भी बच्चा मन लगाकर पढ़ाई कर सकता है। एक शोध के अनुसार, जिन बच्चों को पढ़ाई में परिवार के लोग मदद करते हैं, वे जल्दी चीजों को याद कर सकते हैं। बच्चे के साथ पेरेंट्स भी पढ़ेंगे और उनके होमवर्क में मदद करेंगे, तो इसका सीधा असर बच्चों की परफॉर्मेंस पर नजर आ सकता है।

भावनात्मक सपोर्ट जरूरी

बच्चों के कम नंबर आने पर उन्हें डांटने की बजाय मोटिवेट करें। उन्हें भावनात्मक सहयोग दें। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ता है। किशोरावस्था में बच्चे के इमोशंस का ध्यान रखना बेहद महत्वपूर्ण होता है। कभी भी अपने बच्चों की तुलना दूसरे बच्चों से न करें। उन्हें अगर किसी तरह परेशानी है, तो उनकी समस्या को जानने की कोशिश करें। उन्हें इस बात का एहसास दिलाएं कि वे अपनी परेशानी बिना किसी डर के शेयर कर सकते हैं। इससे पेरेंट्स को उनके बच्चे की समस्या के बारे में मालूम हो सकता है। यहीं नहीं, पेरेंट्स उनकी तकलीफ का उपाय भी ढूंढ सकते हैं।

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