Triyuginarayan Temple: उत्तराखंड के इस गांव में हुआ था भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह; दिल्ली से सिर्फ इतनी है दूरी

Triyuginarayan Temple: वास्तुकला की दृष्टि से त्रियुगीनारायण मंदिर लगभग केदारनाथ मंदिर जैसा दिखता है। किंवदंतियां हैं कि 1200 साल पहले आदि शंकराचार्य ने इसे बनाया था।

Triyuginarayan Temple: भारत में हिंदू धर्म के तहत भगवान शिव और माता पार्वती का एक विशेष और आदर्श स्थान व महत्व है। प्रत्येक हिंदू शादी में शिव-पार्वती विवाद की तस्वीर या मूर्ति का भी अनिवार्य चलन है।

शिव-पार्वती विवाह हर एक हिंदू के लिए उतना ही खास है, जितना शादी की अन्य रस्में। ऐसे में आज हम आपको उस स्थान के बारे में बताएंगे, जहां भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह हुआ था। ये स्थान उत्तराखंड में है।

भगवान विष्णु को समर्पित है ये मंदिर

उत्तराखंड के रुद्रप्रयाग जिले का त्रियुगीनारायण गांव उन सभी लोगों के लिए एक आदर्श स्थान है, जो शादी करने के लिए एक पवित्र स्थान की तलाश में हैं, क्योंकि यहीं पर भगवान शिव और माता पार्वती का विवाह संपन्न हुआ था। उत्तराखंड का यह खूबसूरत गांव भगवान विष्णु को समर्पित है।

आपको यह जानकर हैरानी होगी कि इस मंदिर की कई ऐसी विशेषताएं हैं, जो प्राचीन कथा की गवाही देती हैं। एक शाश्वत अग्नि चौबीसों घंटे मंदिर में जलती रहती है। लोककथाओं के अनुसार माना जाता है कि ये वही अग्नि है जो शिव-पार्वती विवाह के अवसर पर जलाई गई थी।

यहां हैं चार विशेष कुंड

इसके अलावा चार पानी की कुंड भी हैं। स्नान के लिए रुद्र कुंड, पानी पीने के लिए ब्रह्म कुंड, सफाई के लिए विष्णु कुंड और तर्पण के लिए सरस्वती कुंड। जो तीर्थयात्री त्रियुगीनारायण मंदिर जाते हैं, वे गौरी कुंड मंदिर भी जाते हैं।

कथाओं के अनुसार, भगवान ब्रह्मा ने यहां भगवान शिव और माता पार्वती के विवाह को संपन्न करने के लिए पुजारी के रूप में सेवा की थी। भगवान विष्णु ने दुल्हन के भाई द्वारा किए जाने वाले सभी अनुष्ठानों को पूर्ण किया था। यहां ब्रह्म शिला नाम का एक पत्थर भी है, जिसे विवाह के सटीक स्थान को दर्शाया जाता है। वहां लिखा है कि अगर कोई पवित्र अग्नि से राख लेकर अपने घर में एक साफ जगह पर रखता है, तो इससे उन्हें दांपत्य सुख की प्राप्ति होती है।

कथाओं के अनुसार, आदि शंकराचार्य ने इस मंदिर का बनाया

वास्तुकला की दृष्टि से त्रियुगीनारायण मंदिर लगभग केदारनाथ मंदिर जैसा दिखता है। किंवदंतियां हैं कि वर्तमान संरचना लगभग 1200 साल पहले संत, लेखक और दार्शनिक आदि शंकराचार्य द्वारा बनाई गई थी। एक मीडिया रिपोर्ट के अनुसार, इस स्थान के बारे में जानकारी होने पर कई देसी, विदेशी और एनआरआई लोगों ने यहां अपनी शादी के कार्यक्रम किए।

यहां पहुंचने के लिए सोनप्रयाग से लगभग 12 किमी की दूरी पर एक सड़क मार्ग से तय करनी होती है। इसके बाद गुत्तूर और फिर केदारनाथ मार्ग पर 5 किमी का एक ट्रैक है। यह रास्ता एक घने जंगल से होकर गुजरता है। हरिद्वार से त्रियुगीनारायण मंदिर करीब 275 किमी दूर है। जबकि दिल्ली से यहां की दूरी करीब 450 किमी है।

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