How To Cure Fanaticism: ईश्‍वर पर भरोसा हो न हो सबके कारण हैं यहां, कैसे दूर हो कट्टरता?

How To Cure Fanaticism: ईश्‍वर पर भरोसा निजी विषय है पर यह अक्‍सर निजता का विषय नहीं रह जाता। ईश्‍वर पर गहन भरोसा के पक्ष में अनेक तर्क हैं। वहीं कुछ लोगों को ईश्‍वर को लेकर संदेह रहता है, वह भरोसा नहीं कर पाते। उनके भी अपने तर्क हैं। आइए स्‍प्रीचुअल कोच और देश के जाने माने न्‍यूरोसर्जन डॉक्‍टर पंकज कुमार से इस विषय को विस्‍तार से समझें। सबसे पहले जानें कि कुछ लोग क्यों कुछ लोग परमात्मा में विश्वास करना चुनते हैं :

विश्वास और आध्यात्मिक अनुभव

बहुत से लोग व्यक्तिगत अनुभव या आध्यात्मिकता की भावना के आधार पर ईश्वर में विश्वास करते हैं। हो सकता है कि उनके पास गहन मुलाकातों का अनुभव हों, विस्मय और आश्चर्य की भावनाएं हों, या दिव्य उपस्थिति की भावना हो, जिसका श्रेय वे एक उच्च शक्ति को देते हैं।

अर्थ और उद्देश्य की भावना

ईश्वर में विश्वास व्यक्तियों को जीवन में अर्थ और उद्देश्य की भावना प्रदान कर सकता है। उन्हें इस विश्वास में आराम और मार्गदर्शन मिल सकता है कि कोई उच्च शक्ति या दिव्य योजना है जो उनके अस्तित्व को महत्व देती है।

नैतिक और मानवीय ढांचा

कुछ लोगों के लिए, ईश्वर में विश्वास एक नैतिक और मानवीय ढांचा प्रदान करता है। वे विश्वास कर सकते हैं कि ईश्वर नैतिक सिद्धांतों और मूल्यों को स्थापित करता है जो मानव व्यवहार का मार्गदर्शन करते हैं और करुणा, दया और न्याय को बढ़ावा देते हैं।

ब्रह्मांड का अस्तित्व और डिजाइन

कुछ लोग ब्रह्मांड की जटिलता, व्यवस्था और सुंदरता को एक उच्च बुद्धि या निर्माता के प्रमाण के रूप में पाते हैं। वे जीवन के अस्तित्व, भौतिक स्थिरांकों की सूक्ष्मता और प्रकृति में जटिल रचना को एक उद्देश्यपूर्ण रचना के संकेत के रूप में देखते हैं।

सांस्कृतिक और सामाजिक प्रभाव

ईश्वर में विश्वास सांस्कृतिक, पारिवारिक या सामाजिक कारकों से प्रभावित हो सकता है। लोग अपने समुदाय या परिवार की धार्मिक मान्यताओं को अपना सकते हैं, आराम, पहचान और धार्मिक समुदाय में अपनेपन की भावना पा सकते हैं।

यह ध्यान रखना महत्वपूर्ण है कि ये कारण ईश्वर के अस्तित्व के निश्चित प्रमाण नहीं हैं, और उनमें विश्वास अंततः व्यक्तिगत विश्वास और व्याख्या का विषय है। उन लोगों के दृष्टिकोण का सम्मान करना भी महत्वपूर्ण है जो अलग-अलग विश्वास रखते हैं या ईश्वर में विश्वास नहीं करना चुनते हैं। ईश्वर में विश्वास करने या न करने का निर्णय एक व्यक्तिगत यात्रा है जो प्रत्येक व्यक्ति के लिए अलग-अलग होती है।

अब बात नास्तिक लोगों की

कुछ लोग ईश्वर में विश्वास नहीं करते होंं। यह व्यक्तिगत और सांस्कृतिक प्रभावों, तार्किक या आधारभूत प्रश्नों, विज्ञान और तर्क से संबंधित कारणों आदि पर निर्भर करता है। यहां कुछ सामान्य कारण दिए गए हैं जिनके आधार पर लोग ईश्वर में विश्वास नहीं करते हैं:

अभाव या अनुभव की कमी

कुछ लोगों को ऐसा अनुभव नहीं होता है जो उन्हें इश्वर की अस्तित्व पर विश्वास करने पर ले आता है। यह उनके जीवन में ऐसे स्पष्ट अनुभवों की कमी के कारण हो सकता है जो उन्हें ईश्‍वरीय शक्ति के अस्तित्व की ओर प्रवृत्त कर सके।

तार्किक या विज्ञानिक प्रश्न

कुछ लोग ईश्वर के अस्तित्व के संदर्भ में तार्किक और विज्ञानिक प्रश्नों को उठाते हैं। वे विज्ञान और तर्क के माध्यम से विश्वास के विषय में अधिक संदेहशील हो सकते हैं और इश्वर के अस्तित्व को वैज्ञानिक या तार्किक दृष्टिकोण से स्थापित करने में संकोच करते हैं।

दुःख और कठिनाइयों का प्रमाण

कुछ लोगों को ईश्वर में विश्वास करने में रुचि नहीं होती क्योंकि वे अधिकांश दुःख, कठिनाइयां और अन्य अवस्थाओं के सामर्थ्य पर विचार करते हैं। यह उन्हें ईश्वर की अस्तित्व को संदेहास्पद बना सकता है, क्योंकि वे सोचते हैं कि यदि एक सर्वशक्तिमान और परम कर्ता होता तो ऐसे दुख और कठिनाइयों की उत्पत्ति कैसे हो सकती है।

धार्मिक अन्याय या प्रश्न

कुछ लोग ईश्वर में विश्वास करने से बचते हैं क्योंकि उन्हें धार्मिक अन्याय या विवेकशील प्रश्नों का सामना करना पड़ता है। यह शामिल हो सकता है जब धर्मिक विचारधारा उनके मानवाधिकारों, अन्य धर्मों और न्याय के सिद्धांतों के साथ मेल नहीं खाती है।

व्यक्तिगत नीति या अनुभव

कुछ लोगों को सिद्धांतिक या नैतिक कारणों के कारण ईश्वर के अस्तित्व में विश्वास नहीं होता है। वे अपनी व्यक्तिगत नीति, तर्क, या दार्शनिक मान्यताओं पर आधारित जीवन चुनने पर प्रवृत्त हो सकते हैं।

इन कारणों के अलावा, धर्मग्रंथों के अभिप्रेत मान्यताओं, वैज्ञानिक खोजों के परिणामों, ऐतिहासिक घटनाओं, नवीन विचारधाराओं, सामाजिक परिवर्तनों, व्यक्तिगत विकास आदि पर भी इस विषय पर विचार किया जा सकता है। यह आधारभूत तर्क और प्रश्न केवल एक संक्षेपित सूची हैं और व्यक्तिगत और सामाजिक परिस्थितियों में अत्यधिक भिन्नताओं के कारण लोग ईश्वर में विश्वास करने से बच सकते हैं।

कैसे रोकें धार्मिक कट्टरता!

धार्मिक कट्टरता के कारण आपसी प्रेम-भाव का वातावरण खत्म होकर नफरत और भय का वातावरण बन जाता है, जो हमारे विकास को भी अवरुद्ध कर देता है। धार्मिक कट्टरता को रोकने के लिए यहां दिए सुझावों को अमल में लाना आवश्यक है, और साथ ही उच्च संवेदनशीलता, संवेदनशीलता, और सम्मान का माहौल बनाना चाहिए। इसके लिए सरकार, सामाजिक संगठन, शिक्षा प्रणाली, मीडिया, और व्यक्तिगत स्तर पर सभी को सहयोग करना चाहिए।

शिक्षा और जागरूकता: शिक्षा और जागरूकता को बढ़ावा देना धार्मिक कट्टरता को रोकने का महत्वपूर्ण माध्यम है। शिक्षा और जागरूकता के माध्यम से लोगों को समझाना चाहिए कि समानता, सहभागिता, तालमेल, और सहिष्णुता महत्वपूर्ण मान्यताएं हैं और धार्मिक कट्टरता की बजाय उन्हें बढ़ावा देने चाहिए।
सामाजिक संघटना: सामाजिक संघटनाओं को बढ़ावा देना और संप्रदायिक समझौते के माध्यम से लोगों को एक-दूसरे के साथ मिलकर काम करने और रहने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।  अलगाव को कम करने और सभ्यता और संवेदनशीलता की गहरी संस्कृति को प्रोत्साहित करने के लिए सामाजिक संघटनाएं महत्वपूर्ण हो सकती हैं।
साक्षरता और शिक्षाप्रदता: साक्षरता को बढ़ावा देना और शिक्षाप्रदता को सुनिश्चित करना चाहिए। शिक्षित और सशक्त नागरिकों की संख्या बढ़ाने से धार्मिक कट्टरता को कम करने में मदद मिल सकती है, क्योंकि शिक्षित लोगों को समझदारी, तालमेल, और समयोजन की क्षमता होती है।
सामरिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के बीच संवाद: सामरिक और सांस्कृतिक प्रवृत्तियों के बीच संवाद को प्रोत्साहित करना चाहिए। लोगों को अपनी धार्मिक और सांस्कृतिक मान्यताओं को समझने और सम्मान करने की आवश्यकता है और इसके साथ ही विभिन्न धर्मों और सांस्कृतिक प्रथाओं के बीच भी अभिप्रेत संवाद को सुनिश्चित करना चाहिए।
एकजुटता व आपसी सहायता : आपसी सहायता, और एकजुटता को बढ़ावा देना चाहिए। लोगों को धर्म, समुदाय, और जाति के पार आपसी मदद, समरसता, और सहयोग को स्वीकार करने की आवश्यकता है।

 

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