Biography of Dadi Prakashmani: दादी प्रकाशमणि‍ ने विश्‍व में फैलाया अध्यात्म का प्रकाश

Biography of Dadi Prakashmani: दादी प्रकाश मणि प्रजापिता ब्रह्माकुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की दूसरी मुख्य प्रशासिका थीं। 25 अगस्‍त,  2007 में उन्‍होंने अपना शरीर छोड़ा था।

Biography of Dadi Prakashmani: दादी प्रकाशमणि‍ उन चुनिंदा शख्सियतों में शामिल हैं, जो इस दुनिया से जाने के बाद भी लाखों लोगों को प्रेरित करती हैं। उन्होंने 1969 से 2007 तक संस्था की जिम्मेदारी संभाली और पूरे विश्व को शांति एवं बंधुत्व का संदेश दिया। दादी के कुशल नेतृत्व में संस्था द्वारा देश के अलावा विदेशों में सेवाओं का विस्तार हुआ। सच्चाई एवं पवित्रता की प्रतिमूर्ति दादी (Biography of Dadi Prakashmani) सभी की स्नेही थीं।

दादी प्रकाशमणि‍ ने अपने जीवन में उन्होंने कभी झूठ नहीं बोला, न ही क्रोध किया। उनके विचारों, शब्दों, कार्यों एवं संबंधों में सिर्फ सत्य परिलक्षित होता था। नेत्र हीरे के समान चमकते और चेहरे से प्रेम झलकता रहता था। वे एक ऐसी नेतृत्वकर्ता थीं, जिन्होंने बताया कि शांति स्थापित करने के लिए पहले स्वयं को शांत रखना आवश्यक है। आइए, बीके अंशु की लेखनी के माध्‍यम से संक्षेप में जानते हैं कैसी थी दादी प्रकाशमणि की जीवन यात्रा…

रमा जब मिलीं ओममंडली से

​दादी प्रकाशमणि के बचपन का नाम रमा था। उनका जन्म हैदराबाद, सिंध (वर्तमान पाकिस्तान) में वर्ष 1922 में हुआ था। पिता एक प्रतिष्ठित व्यापारी एवं ज्योतिषी थे। श्री कृष्ण के प्रति अगाढ़ प्रेम एवं भक्ति भाव था।रमा को भी श्री कृष्ण से अटूट प्रेम था। सात-आठ वर्ष कीआयु से ही वह उनकी भक्ति कर रही थीं। उन्हें लगता था कि एक दिन वह मीरा बनेंगी। उन्होंने छोटी उम्र में हीजप साहेब, सुखमणि और गीता व रामायण पढ़ ली थी। वह महज 14 वर्ष की थीं, जब पहली बारदीवाली की छुट्टियों के दौरान उनका ‘ओम मंडली’ से उनका संपर्क हुआ।

वहां जाने के पश्चात् रमा को श्री कृष्ण समेत अनेक दिव्य साक्षात्कार हुए। उन्हें ज्योति स्वरूप शिव एवं नई दुनिया का भी साक्षात्कार हुआ। उन्होंने वर्तमान विश्व, प्रकृति के प्रकोप, अणु शक्ति, गृह युद्ध द्वारा परिवर्तन होने के दृश्य देखे। पहले पहल वे समझ नहीं पा रही थीं कि आखिर उनके साथ क्या हो रहा है? लेकिन कुछ ही समय में उन्हें निश्चय हो गया कि ब्रह्मा बाबा जो मुरली सुनाते थे, वह कोई और नहीं, बल्कि परमपिता परमात्मा, निराकारी शिव उनके तन का आधार लेकर सुना रहे थे। इसके बाद ही रमा ने प्रजापिता ब्रह्मा के सम्मुख ईश्वरीय सेवा में अपना जीवन समर्पित करने का बड़ा फैसला कर लिया।

भारत में सेवाओं की शुरुआत

यज्ञ में शामिल होने के बाद परमात्मा शिव द्वारा रमा का नया जन्म हुआ और उन्हें नया नाम मिला- ‘प्रकाशमणि’। मार्च 1950 में जब ‘ओम मंडली’ का कराची से भारत के माउंट आबू आना हुआ, तो दादी (Biography of Dadi Prakashmani) को सेवाओं के विस्तार की अहम जिम्मेदारी मिली। दादी सेवाओं के लिए मुंबई गईं और वहां कई केंद्रों की शुरुआत करायी। जन-जन को आध्यात्मिक ज्ञान एवं राजयोग के लाभ से अवगत कराया।

मुंबई के अलावा, दिल्ली, अमृतसर, कानपुर, कोलकाता, पटना, बेंगलुरु जैसे महानगरों में सेवाकेंद्रों की स्थापना हुई। सन् 1954 में प्रजापिता ब्रह्मा ने उन्हें द्वितीय विश्व धार्मिक कांग्रेस में शामिल होने के लिए जापान भेजा। जापान के अतिरिक्त दादी प्रकाशमणि ने थाईलैंड, इंडोनेशिया, हांगकांग, सिंगापुर, श्रीलंका आदि देशों की यात्रा कर लाखों लोगों को अपने जीवन में शांति, शक्ति, भाईचारा एवं खुशी लाने के लिए प्रेरित किया। उनके व्याख्यानों में लोगों का हुजुम उमड़ पड़ता था।

सबके गुण देखने का दिया संदेश

दादी प्रकाशमणि गुणों का खजाना थीं। उनका स्वभाव बहुत मधुर था। वह काफी सहनशील एवं सहयोगीथीं। निर्मलता इतनी थी कि कभी किसी को एहसास नहीं होने देतीं कि संस्था की प्रमुख प्रशासिका हैं। उन्हें स्वयं को हमेशा निमित्त समझा और माना कि परमपिता परमात्मा ही सारे कार्य करवाते हैं। अहंकार का अंश तक नहीं था उनमें। अपना समय ईश्वरीय सेवाओं के अलावा आध्यात्मिक संगोष्ठियों में व्यतीत करती थीं। उनके लिए (Biography of Dadi Prakashmani) कोई भी कार्य छोटा नहीं होता था। यहां तक कि मुख्यालय (माउंट आबू) आने वालों के लिए भोजन तैयार करने में मदद करने जैसीसेवाएं करने से भी वह कभी पीछे नहीं रहती थीं।

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सभी लोग एक मां, एक मार्गदर्शक और प्रिय मित्रके रूप में दादी से प्यार करते थे। दादी भी सबको समान दृष्टि से देखा करती थीं। उनकी नजरों में सब बराबर एवं विशेष थे। वह हर किसी की विशेषता देखा करती थीं और दूसरों को भी यही संदेश देती थीं कि अवगुण नहीं, गुण देखो। यही कारण था कि समाज के हर वर्ग के लोग, राजनेता, धर्म गुरु उनका सम्मान करते थे। उनसे प्रेरणा लेते थे।

विदेशों में किया सेवाओं का विस्तार

1965 में जब मम्मा (संस्था की पहली मुख्य प्रशासिका)का देहावसान हुआ, तो उन्होंने संस्था का अतिरिक्त कार्यभार संभाला। दादी को आभास नहीं था कि चार वर्ष के अंदर ही उनके ऊपर एक बहुत बड़ी जिम्मेदारी आने वाली है। दरअसल, दादी जी की ईमानदारी, निष्ठा, अदम्य साहस एवं विश्व कल्याण की सेवाओं के प्रति समर्पण भाव को देखते हुए 1969 में ब्रह्मा बाबा ने अपने देहावसान से पूर्व संध्या पर ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय की मुख्य प्रशासिका की बागडोर उन्हें सौंप दी। तब से दीदी मनमोहिनी के साथ मिलकर दादी (Biography of Dadi Prakashmani) पूरे विश्व को प्राचीन भारतीय संस्कृति, सभ्यता एवं राजयोग के सिद्धांतों से परिचित कराने के अभियान में जुट गईं। उनके समर्थ नेतृत्व में संस्था की सेवाओं का देश ही नहीं, विदेशों(अमेरिका, ब्रिटेन, ऑस्ट्रेलिया) में भी काफी विस्तार किया।

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थोड़े ही समय में विश्व के 120 देशों में ब्रह्मा कुमारी ने अपनी सशक्त उपस्थिति दर्ज करायी। सेवाकेंद्रों की संख्या पांच हजार के करीब पहुंच गई। दादी के कुशल संचालन में ईश्वरीय विश्वविद्यालय में व्यक्तित्व निर्माण की आभा इतनी तीव्र हो गई कि देश-विदेश में लाखों भाई-बहन ईश्वरीय कार्य में समर्पित हो गए।

संयुक्त राष्ट्र से मिला सम्मान

दादी प्रकाशमणि के नेतृत्व में समाज में जिस तरह से शांति, सद्भावना, धार्मिक समरसता, भाईचारा आदि मूल्यों की स्थापना हो रही थी, उस कार्य को देखते हुए संयुक्त राष्ट्र ने प्रजापिता ब्रह्मा कुमारी ईश्वरीय विश्वविद्यालय को गैर-सरकारी संस्था के तौर पर आर्थिक एवं सामाजिक परिषद की परामर्शक सदस्यता प्रदान की तथा यूनिसेफ से भी इसे जोड़ा। 1986 में अंतरराष्ट्रीय शांति वर्ष के उपलक्ष्य में संयुक्त राष्ट्र ने दादी की देखरेख में मिलियन मिनट्स ऑफ पीस’ नाम से एक अपील जारी की थी, जिसमें विश्व भर के लोगों से एकजुट होकर शांति एवं भाईचारा का संदेश फैलाने का आह्वान किया गया था। इसके बाद ही संयुक्त राष्ट्र संघ ने संस्था को अंतरराष्ट्रीय शांति पदक भी प्रदान किया।

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10 जून को आता है प्रकाशमणि दिवस 

वहीं, 1987 में सकारात्मक कार्यों के लिए दादी प्रकाशमणि कोशांति दूत सम्मान से सम्मानित किया। इसके अलावा, अनेक महामंडेलश्वरों, सामाजिक संस्थाओं, राज्य सरकारों ने दादी को पुरस्कार एवं सम्मान दिए। दादी की आध्यात्मिक शक्ति को देखते हुए मोहनलाल सुखाड़िया विश्वविद्यालय द्वारा उन्हें डॉक्टरेट की उपाधि प्रदान की गई। राजस्थान के तत्कालीन राज्यपाल डॉ. एम.चेन्ना रेड्डी ने उन्हें यह उपाधि दी। शिकागो में हुए विश्व धर्म संसद ने भी अपने शताब्दी कार्यक्रम में दादी (Biography of Dadi Prakashmani) को मनोनीत अध्यक्षा के रूप में आमंत्रित किया। इतना ही नहीं, वर्ष 2000 में जब दादी वॉशिंगटन में थीं, तब वहां के तत्कालीन मेयर ने स्टेट कैपिटल बिल्डिंग के सामने उनसे वृक्षारोपण कराया और प्रत्येक वर्ष 10 जून को प्रकाशमणि दिवस के रूप में मनाने की उद्घोषणा की। यह आज भी यथावत मनायी जाती है।

लाखों लोगों के जीवन में आया परिवर्तन

मानवीय मूल्यों से ओतप्रोत दादी के निर्मल, पवित्र एवं प्रकाशमय जीवन से लाखों लोगों के जीवन में परिवर्तन आया है। इनकी प्रेरणा से लाखों परिवारों के लोग सात्विक, तनावमुक्त एवं संतुष्ट जीवन जीने की कला सीखकर अन्य लोगों के लिए आदर्श बने हैं। अपने स्वास्थ्य से जुड़ी समस्याओं से बेफिक्र दादी ने वर्ष 2007 तक बड़े ही ओजपेर्ण तरीके से संस्था की जिम्मेदारियां संभाली। लेकिन 25 अगस्त को सुबह दस बजे दादी ने आखिरकार अपने शरीर का त्याग कर दिया। उनकी स्मृति में हर वर्ष 25 अगस्त को ‘विश्व बंधुत्व दिवस’ काफी धूमधाम से मनाया जाता है।

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