Jyon Navak Ke Teer : शायद ही हमने यह सोचा हो कि प्रचुर जानकारियों और बहुत अधिक मतों के कारण बुद्धि तो विकसित हो जाती है, पर बहुत कुछ ऐसे कीमती गुण भी हैं जो मुरझा जाते हैं| बुद्धि के विकास और संवर्धन को हमने ख़ूब महिमामंडित किया है, पर मस्तिष्क में बुद्धि के अलावा भी कई क्षमताएं हैं जिनकी जीवन में बहुत जरुरत है और जिनके बिना हम जीवन को पूरी तरह देख समझ नहीं पाते। जिसे हम बुद्धिमान कहते हैं वह एक बहुत ही चतुर और धूर्त व्यक्ति हो सकता है, और जिसे मूर्ख कहते हैं, वह बड़ा ही धैर्यवान, शांतचित्त, गहरी दृष्टि रखने वाला कोई व्यक्ति भी हो सकता है। चंचल और शातिर बुद्धि शांत होकर देखने और सुनने की हमारी क्षमता को हर लेती है, और इन दोनों का जीवन में बहुत गहरा महत्व है।
बुद्धि से होता है एकतरफा विकास
बुद्धि अक्सर एकतरफा विकास को जन्म देती है। एक प्रोफेसर महोदय एक बार अकेले नौका भ्रमण पर निकले। केवट के सामने अपने ज्ञान का प्रदर्शन करने लगे। उन्होंने केवट से पूछा कि क्या वह संस्कृत या अंग्रेजी जानता है, क्या वह व्याकरण की समझ रखता है, क्या वह संगीत की बारीकियां समझ पाता है, वगैरह वगैरह। नाविक हर बात का नकारात्मक जवाब देता और कहता कि वह ठहरा एक गरीब नाविक, जिसे कभी स्कूल के भीतर पैर रखने का भी मौका नहीं मिला। इस पर प्राचार्य महोदय ने कहा कि उसका समूचा जीवन ही व्यर्थ चला गया इन महान विधाओं के ज्ञान के बगैर। यह दुर्योग ही था कि उसी समय नाव एक भंवर में फंस गई। आचार्य महोदय चीखने-चिल्लाने लगे, और लगे भय से कांपने। नाविक ने बड़ी विनम्रता के साथ पूछा: “साहब तैरना आता है?” “नहीं भाई, नहीं आता”, और इससे पहले कि नाविक उन्हें बचाने की कोशिश भी कर पाता, पानी के तेज प्रवाह ने आचार्य महोदय को अपनी गहराई में खींच लिया।
ज्ञान का सबसे कीमती पहलू है यह जानना कि आप क्या नहीं जानते। एथेंस में जब सुकरात ने यह घोषणा की कि वह सबसे अधिक ज्ञानी है तो लोगों ने उनको चुनौती दी कि वह साबित करे कि वह कैसे सबसे अधिक ज्ञानी है। सुकरात का सीधा जवाब था कि वह इसलिए सबसे ज्ञानी है क्योंकि वह जानता है कि वह क्या नहीं जानता। एक तरह से ज्ञानी का अर्थ है खुद की मूर्खता को समझना।
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सिर्फ किताबी ज्ञान अधूरा
टॉलस्टॉय ने ‘द थ्री हर्मिट्स’ के नाम से बड़ी प्यारी कहानी लिखी है। तीन बूढ़े, गरीब फ़कीर एक द्वीप पर रहते थे और उनके बारे में कई लोग यही समझते थे कि वे बड़े मूर्ख हैं। एक दिन इलाके के एक बिशप की उनके बारे में जिज्ञासा हुई। वह जब उस सुनसान द्वीप पर पहुंचा तो ये तीनों फ़कीर बस एक ही बात दोहरा रहे थे: “तुम भी तीन, हम भी तीन, हमें माफ़ कर देना!” (ईसाईयत में होली ट्रिनिटी का सिद्धांत हैं जिसमें पवित्र आत्मा, पवित्र पिता और उसका पवित्र पुत्र शामिल हैं)। बिशप ने तीनों फटेहाल फकीरों को उनके अज्ञान के लिए जम कर फटकारा।
उन्होंने बाइबिल के हिसाब से उनको सही तरीका सिखाया। तीनों ने बड़ी ईमानदारी के साथ बिशप की बातों को सीखने और याद करने के प्रयास किये। आखिर में बिशप संतुष्ट हुआ और वहां से चल पड़ा। जैसे ही पादरी का जहाज समुद्र में कुछ दूर गया उसने देखा कि तीन लोग तेजी से समुद्र के पानी पर चलते हुए आ रहे थे। जहाज में बैठे लोगों की सिट्टी पिट्टी गुम हो गई। ये तीनों फ़कीर जहाज के पास पहुंचे और बिशप से कहा: महाशय, हम आपका सिखाया हुआ सब कुछ फिर भूल गए। हमें माफ़ कर दें और फिर से सिखाने का प्रयास करें। बिशप उनके सामने नतमस्तक हो गया और कहा कि उनकी ही प्रार्थना ईश्वर तक पहुंचेगी; वह तो नादान है। बिशप ने उनसे कहा कि वे उसकी आत्मा की भी रक्षा करे।
अज्ञान को समझना ही है सच्चा ज्ञान
सोच समझ वालों को थोड़ी नादानी की भी जरुरत है।साथ ही ज्ञानियों को यह समझने की भी जरूरत है कि जो ज्ञान उनके पास है, और जिसे बटोर कर वे फूले नहीं समाते, वह अज्ञान भी हो सकता है, सिर्फ कुछ परिस्थतियों में काम आने वाला भी हो सकता है, जीवन से बिलकुल अलग-थलग, अप्रासंगिक हो सकता है और वह वास्तव में ज्ञान न होकर बस जानकारियों का एक पुलिंदा मात्र हो सकता है।
गंभीर शोध बताते हैं बुद्धिमानी या प्रज्ञा की नौ किस्में होती हैं| इनमें गणित समझने की, बागवानी करने की, संगीत सीखने की, खेल कूद में अच्छे परफॉरमेंस करने की, रिश्तों को बनाये रखने की, जीवन के बुनियादी सवाल पूछने की और उनके साथ ठहरे रहने की समझ भी शामिल है। तो यदि हम सफल कारोबारी हुए और घर में पति या पत्नी के साथ झगड़ते रहे, तो हम भी मूर्ख ही हुए। अच्छे संगीतकार होने के साथ हम अहंकार से पूरी तरह भरे हुए हों, तो भी मूर्ख ही हुए। निष्कर्ष यही है कि हम सभी आंशिक रूप से बुद्धिमान और आंशिक रूप से मूर्ख हैं। पर शायद ही कोई हो जो मूर्ख कहे जाने पर बिदक न जाए!!!
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आई क्यू, इंटेलिजेंस कोशेंट (लब्धि) के अलावा आपके ई क्यू यानी इमोशनल कोशेंट का भी महत्त्व है। आप सिर्फ बौद्धिक हैं पर भावनात्मक तौर पर सूखे ठूंठ हैं तो आप न सिर्फ अपने लिए बल्कि समाज के लिए भी एक आफत ही हैं।अब तो आपकी नेचर कोशेंट भी देखी जाती है, जिसमें यह परखा जाता है कि कुदरत के प्रति आप कितने संवेदनशील हैं।
मूर्खता है अहंकारी होने में
मूर्खता है मतान्ध होने में, अपने ज्ञान, अपनी समझ पर कभी संदेह न करने में, अपनी सोच और समझ को आखिरी सत्य मानने में| दुनिया को इन्ही तरह के मूर्खों से खतरा है। मूर्खता है अहंकारी होने में। मूर्खता है एक अपरीक्षित जीवन जीने में। ज्ञान की शुरुआत ही प्रश्न से और संदेह से होती है। जो प्रश्न नहीं करता, देर सवेर एक गहरी मूढ़ता उसके जीवन में उतर आती है। यदि उसे इसकी खबर भी न लगे, तो न सिर्फ वह तकलीफ पा सकता है, बल्कि दूसरों के लिए पीड़ा और भयंकर दुःख का कारण भी बन सकता था| शक्ति और धन के पीछे अंधाधुंध भागना भी मूर्खता है। इनका दुरुपयोग और भी बड़ी मूर्खता।
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बेहतर है अपनी तथाकथित बुद्धिमानी पर गर्व न किया जाए, और न ही अपनी तथाकथित मूर्खता पर शर्मिंदा हुआ जाए। सबके जीवन में मूर्खता और ज्ञान दोनों के पल बारी बारी से आते रहते हैं। अपने मूर्ख या बुद्धिमान होने के लेकर कोई स्थाई छवि न बनाई जाए तो बड़ी अच्छी बात होगी और हम बार बार आहत होने, और दूसरों को आहत करने से बच जायेंगे।