Raja Mohajeet Ki Katha : पांच तरह के विकार होते हैं काम, क्रोध, लोभ, मोह, अहंकार। हमारी आत्मा के सात गुण हैं- सुख, शांति, प्रेम, आनंद, ज्ञान, शक्ति व पवित्रता। जहां एक तरफ पांच विकार हैं तो दूसरी तरफ हमारी आत्मा ये सात गुण हैं। बता दें कि जितना हम इन पांच विकारों को प्रयोग कर रहे हैं, उतना ही इस सृष्टि में काम, क्रोध, लोभ, मोह और अहंकार के वाइब्रेशन यानी उसी ऊर्जा बढ़ती जा रही है। यदि हम अपनी आत्मशक्ति जगा लें। संकल्प करें कि हमें पांच विकारों पर जीत पाना है तो निरंतर अभ्यास से यह भी संभव है।
कहानी मोहजीत राजा की
एक बार एक राजकुमार अपने कई सैनिकों के साथ शिकार पर गया। वह बहुत अच्छा शिकारी था। शिकार के पीछे वह इतना दूर निकल गया कि सारे सिपाही पीछे छूट गये। अकेले पड़ने का एहसास होते ही वह रुक गया। उसे प्यास भी लग रही थी। उसे पास में ही एक कुटिया दिखाई दी। वहां एक संत ध्यान- मग्न बैठे हुए थे।
राजकुमार ने संत के पास जाकर पानी मांगा। संत ने राजकुमार का परिचय पूछा। राजकुमार ने संत से कहा कि वह एक राजा का लड़का है जिसने मोह को जीत लिया है। संत बोला- असंभव! एक राजा और वह भी मोह पर विजयी..? यहां मैं एक संन्यासी हूं और अब भी मोह को जीत नहीं पा रहा हूं। तुम कहते हो कि तुम राजकुमार हो और मोह को जीत चुके हो। राजकुमार ने कहा, न मैं, मेरे पिताजी बल्कि सारी प्रजा ने ही मोह को जीत रखा है।
राज के मौत की अफवाह
संत को इसका विश्वास नहीं हुआ तो राजकुमार ने कहा कि आप चाहे तो इस बात की परीक्षा ले लें। संत ने राजकुमार (Raja Mohajeet Ki Katha) कि कमीज मांगी और उसे कुछ और पहनने को दे दिया। संत ने तब एक जानवर को मार कर उसके खून में राजकुमार की कमीज को डुबोया और शहर में चीखता हुआ पहुंच गया कि राजकुमार को एक शेर ने मार दिया।
शहर के लोग कहने लगे- अगर वह चला गया तो क्या हुआ। आप क्यों विलाप कर रहे हो ? वह उसका भाग्य था। संत ने सोचा कि प्रजा नहीं चाहती होगी कि राजकुमार भविष्य में राजा बने इसलिए इस तरह कि प्रतिक्रिया व्यक्त कर रही है। संत महल में गया और राजकुमार की मौत की बात उसके भाई और बहन को सुनाई।
उन्होंने कहा कि अब तक वह हमारा भाई था, अब किसी और का भाई (Raja Mohajeet Ki Katha) बन जाएगा। कोई हमेशा के लिए तो साथ नहीं रह सकता। इसलिए रोने और चिल्लाने की आवश्यकता नहीं है। संत को लगा कि बहन को दूसरा भाई अधिक पसंद है और भाई खुश है कि उसे अब राज्य मिलेगा। इसलिए दोनों ने ऐसी प्रतिक्रिया व्यक्त की।
फिर वह पिता के पास गया और खबर सुनाई। पिता बोले, आत्मा तो अमर और अविनाशी है, इसलिए चिल्लाने की कोई जरूरत नहीं है। वह मेरा पुत्र था इसलिए मैंने सोचा कि वह राजा बनने वाला है लेकिन अब दूसरे पुत्र को राज्य मिलेगा। मैं उसे वापस नहीं ला सकता, इसलिए दुःख क्यों करूं।
सच्चाई बतानी ही पड़ी
पिता की बात सुनकर संत सोच में पड़ गया। हालांकि अभी और भी दो लोग बाकी थे। राजकुमार की माता और पत्नी। संत ने सोचा कि यह दो व्यक्ति तो जरूर पुत्र और पति को लेकर व्याकुल होंगे। लेकिन वहां से भी वैसा ही उत्तर पाकर संत को यकीन न हुआ। वह आश्चर्य में पड़ गया। उसे अपने आप पर ही विश्वास ही नहीं हो रहा था कि वह यह सब देख रहा है। आखिरकार वह हार गया। उसने अपने आने का उद्देश्य और राजकुमार के जिंदा होने की बात सबको बता दी। इसके बाद राजकुमार ने वापस आकर अपना राज्य भाग्य संभाला और वहां हर चीज पहले कि तरह चलती रही।
मोह को हरा दें तो
मोह हमारी शांति को छीन लेता है। इससे हमारी आंखों पर मोटी परत पड़ जाती है जिससे हम सच नहीं देख पाते। कह सकते हैं कि यह हमारी आत्मा की परखने की शक्ति को खत्म कर देता है। मोह सच्चाई को खत्म करता है। जिस भी इंसान में मोह है, उसमें बुद्धिमानी नहीं हो सकती। इस कथा की सीख भी यही है कि न हमें दूसरों में मोह हो और ना ही दूसरों का हममें। तब ही हम विश्व के मालिक बन सकते हैं। हम हर कार्य को पूरी क्षमता से संपन्न कर सकते हैं।
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