सरोगेसी कानून के पिछले नियमों में सरकार ने किया संशोधन, सुप्रीम कोर्ट ने उठाए थे सवाल

शीर्ष अदालत की एक पीठ ने पिछले साल दिसंबर में दो दर्जन से अधिक याचिकाकर्ताओं को सरोगेसी के माध्यम से मां बनने के लिए दूसरी महिला के अंडाणुओं का उपयोग करने की अनुमति देते हुए कहा था, "ऐसे नियमों से सरोगेसी का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।"

सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) के सवाल उठाने के बाद सरोगेसी नियमों में एक महत्वपूर्ण संशोधन किया गया है, जिसके बाद यदि पति-पत्नी में से कोई चिकित्सीय समस्या से पीड़ित है तो उन्हें दाता के अंडाणु या शुक्राणु का उपयोग करने की अनुमति होगी। शीर्ष अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा था कि वह इस संबंध में कार्रवाई क्यों नहीं कर रही है। केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय ने पिछले नियमों में संशोधन किया है जिसमें कहा गया था कि सरोगेसी (किराए की कोख) से संतान चाहने वाले जोड़ों के पास इच्छुक दाता जोड़े के अंडाणु और शुक्राणु होने चाहिए।

शीर्ष अदालत की एक पीठ ने पिछले साल दिसंबर में दो दर्जन से अधिक याचिकाकर्ताओं को सरोगेसी के माध्यम से मां बनने के लिए दूसरी महिला के अंडाणुओं का उपयोग करने की अनुमति देते हुए कहा था, “ऐसे नियमों से सरोगेसी का मूल उद्देश्य ही विफल हो जाएगा।” जनवरी में अदालत ने केंद्र सरकार से पूछा था कि कई महिलाओं के शिकायतें लेकर शीर्ष अदालत पहुंचने के बावजूद वह निर्णय क्यों नहीं ले पा रही है।

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केंद्र की ओर से पेश अतिरिक्त सॉलिसिटर जनरल ऐश्वर्या भाटी ने पिछले महीने कहा था कि सरकार पिछले साल सरोगेसी कानून में लाए गए संशोधन पर पुनर्विचार कर रही है। 14 मार्च, 2023 को सरोगेसी के नियम 7 में किए गए संशोधन के बाद शीर्ष अदालत में कई याचिकाएं दायर की गई थीं। नियम 7 में ‘सरोगेट मां की सहमति और सरोगेसी के लिए समझौते’ और पति के शुक्राणु से दाता के अंडाणुओं के निषेचन के बारे में बताया गया है।

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