Guru Govind Singh Jayanti: सिखों के अंतिम और दसवें गुरु गोविंद सिंह जी का आज 357वां प्रकाश पर्व है। गुरु गोविंद सिंह की जयंती सिखों का एक प्रमुख त्योहार है। आईए दिन उनके विचारों और शिक्षाओं की सिख समुदाय द्वारा पूजा की जाती है। गुरु गोविंद सिंह एक दार्शनिक, शिक्षक और विचारक थे। गुरु गोविंद सिंह के जीवन से जुड़े पांच ऐसे विचार हैं जो व्यक्ति को किसी भी परेशानी से बाहर निकलने में सक्षम हैं। आईए जानते हैं कि मानव जीवन को परिवर्तित करने वाले गुरु गोविंद सिंह के विचार कौन से हैं…
गुरु गोबिंद सिंह ने की थी खालसा की स्थापना
सिखों के दसवें गुरु गोबिंद सिंह जी नौवें गुरु तेगबहादुर के पुत्र थे। इनका जन्म पौष माह के शुक्ल पक्ष की सप्तमी तिथि को पटना के साहिब (बिहार) में हुआ था। गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंथ की स्थापना की थी। यह सिखों के इतिहास की सबसे महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है। गुरु गोबिंद सिंह ने ही गुरु ग्रंथ साहिब को सिखों का गुरु घोषित किया था। उन्होंने अपना पूरा जीवन मानव सेवा और सच्चाई के मार्ग पर चलते हुए बिता दिया। गुरु गोविंद सिंह जी के इन्हीं त्याग और विचारों के प्रचार के लिए हर साल पौष माह की शुक्ल तिथि पर इनकी जयंती मनाई जाती है।
गुरु गोविंद सिंह ने दिए थे पांच विचार
1. पांच ककार
गुरु गोबिंद सिंह ने खालसा पंत की रक्षा के लिए कई बार मुगलों से टकराए थे। सिखों को बाल, कड़ा, कच्छा, कृपाण और कंघा धारण करने का आदेश गुरु गोबिंद सिंह ने ही दिया था। इन्हें ‘पांच ककार’ कहा जाता है। हर सिख के लिए इन्हें धारण करना अनिवार्य है।
2. पटना साहिब गुरुद्वारा
गुरु गोबिंद सिंह ने अपने जीवन में जिन चीजों को इस्तेमाल किया, उन्हें आज भी बिहार के पटना साहिब गुरुद्वारे में सुरक्षित रखा गया है। यहां गुरु गोविंद की छोटी कृपाण भी मौजूद है, जिसे वो हमेशा अपने पास रखते थे। यहां इनकी खड़ाऊ और कंघा भी रखा हुआ है। इनकी मां जिस कुएं से पानी भरती थीं, वो भी यहां मौजूद है।
3. खालसा सैनिकों के नियम
गुरु गोबिंद सिंह जी ने खालसा योद्धाओं के लिए कुछ विशेष नियम बनाए थे। उन्होंने तम्बाकू, शराब, हलाल मांस का त्याग और कर्तव्यों का पालन करते हुए निर्दोष व बेगुनाह लोगों को बचाने की बात कही थी।
4. अनेक भाषाओं का ज्ञान
गुरु गोबिंद सिंह जी अपने ज्ञान और सैन्य ताकत की वजह से काफी प्रसिद्ध थे। ऐसा कहा जाता है कि गुरु गोबिंद सिंह को संस्कृत, फारसी, पंजाबी और अरबी भाषाएं भी आती थीं। धनुष-बाण, तलवार, भाला चलाने में उन्हें महारथ हासिल थी।
5. संत सिपाही
गुरु गोबिंद सिंह विद्वानों के संरक्षक थे। इसलिए उन्हें ‘संत सिपाही’ भी कहा जाता था। उनके दरबार में हमेशा 52 कवियों और लेखकों की उपस्थिति रहती थी। गुरु गोबिंद सिंह स्वयं भी एक लेखक थे, अपने जीवन काल में उन्होंने कई ग्रंथों की रचना की थी। इनमें चंडी दी वार, जाप साहिब, खालसा महिमा, अकाल उस्तत, बचित्र नाटक और जफरनामा जैसे ग्रंथ शामिल हैं।
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