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घोसी उपचुनाव में बीजेपी का दांव पड़ा उल्टा, जीत से सपा को मिली संजीवनी, जानिए डीटिल

Political News : देशभर में कहने के लिए 7 सीटों पर उपचुनाव हुए, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश के घोसी की रही

Political News : देशभर में कहने के लिए 7 सीटों पर उपचुनाव हुए, लेकिन सबसे ज्यादा चर्चा उत्तर प्रदेश के घोसी की रही. घोसी उपचुनाव साल 2024 लोकसभा चुनाव से पहले बने इंडिया गठबंधन की परीक्षा भी माना जा रहा था. इंडिया और एनडीए की ओर से घोसी सरजमीं पर एड़ी से चोटी तक जोर आजमाइश हुई. डेढ़ दर्जन से ज्यादा मंत्रियों की फौज से लेकर बीजेपी के 50 से अधिक विधायक घोसी उपचुनाव को जिताने के लिए दिन रात मेहनत में डटे रहे.

दूसरी ओर विपक्षी पार्टी सपा ने भी माहौल बनाने में कमी नहीं छोड़ी, जिसने करीब 15 विधायक और अखिलेश यादव के चाचा व पार्टी महासचिव शिवपाल यादव कैंप पर ही रहे.
सपा छोड़कर बीजेपी के टिकट पर चुनाव लड़ रहे दारा सिंह को हराने के लिए पार्टी प्रमुख अखिलेश यादव भी पहली बार उपचुनाव में प्रचार करने घोसी पहुंचे.

अखिलेश यादव ने घोसी के मंच से सपा प्रत्याशी सुधाकर सिंह को वोट देने की अपील की, जिसका परिणाम सकारात्मक रहा. सूबे के सीएम योगी आदित्यनाथ ने भी घोसी में एक जनसभा की, जहां वोटों के ध्रुवीकरण करने की कोशिश भी की गई. योगी आदित्यनाथ ने मंच से 2 जून 1995 में हुए गैस्ट हाउस कांड का जिक्र कर दलित वोटों को पाले में खींचने की कोशिश की, जो कि नाकाम साबित हुई.

इस चुनाव में बीजेपी कैडर से अलग सपा से गठबंधन तोड़ने वाले सुभाषपा के प्रमुख ओमप्रकाश राजभर की भी प्रतिष्ठा दांव पर लगी थी. ओमप्रकाश राजभर मऊ जिले की घोसी सीट पर राजभर मतदाताओं में अच्छी पकड़ होने का दावा सार्वजनिक मंच से भी करते रहे हैं.

इतना ही नहीं ओमप्रकाश राजभर अपनी जाति का वोट जेब में बताने की बात भी कहते रहे, लेकिन घोसी के मतदाताओं ने उनके दावों को हवा हवाई कर दिया. राजभर बूथों पर भी सपा को बंपर वोट मिला, जिसको नतीजों में देखा गया. मऊ में विपक्ष ने घोसी बनाम बाही का मुद्दा उछाला, जिस चक्रव्यूह में बीजेपी के नेता लगातार फंसते चल गए.

परिणाम यह हुआ कि सपा के बुने जाल में सिसायत और बीजेपी के दारा सिंह करीब 43 हजार वोटों के अंतर चुनाव हार गए. घोसी चुनाव से ऐसे नेताओं को सबक लेने की जरूरत है जो निजी स्वार्थ के लिए पार्टियों को कपड़ों की तरह बदल देते हैं.

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