Hockey Wali Sarpanch Neeru Yadav: 3 मई, 2024 को संयुक्त राष्ट्र मुख्यालय न्यूयॉर्क के सचिवालय भवन में एक शानदार कार्यक्रम का आयोजन हुआ। यह भारत के पंचायती राज मंत्रालय (एमओपीआर) और संयुक्त राष्ट्र जनसंख्या कोष (यूएनएफपीए) के सहयोग से हुआ था। इस कार्यक्रम में भारत में स्थानीय शासन में महिलाएं-विषय पर चर्चा के दौरान भारत की तीन महिलाओं ने अपने विचार रखे थे। इनमें से एक थीं नीरू यादव।
वह अभी राजस्थान के झुंझनु के लांबी अहीर पंचायत से सरपंच हैं। उनके साथ इस कार्यक्रम में आंध्र प्रदेश की पेकेरू ग्राम पंचायत की सरपंच कुनुकु हेमा कुमारी व त्रिपुरा के सेपाहीजाला जिला परिषद की सभाधिपति सुप्रिया दास दत्ता भी शामिल हुईं।
शहर की बेटी जब छाईं गांव में
यूं तो हरियाणा के नारनौल से हैं नीरू यादव पर शादी के बाद वह राजस्थान आ गयीं। यहां से गणित में एमएससी किया। एक पढ़े लिखे परिवार से वह थीं जहां काफी खुलापन भी था। ससुराल यानी झुंझनु आकर उन्होंने पहली बार गांव के परिवेश को देखा व समझा।
यहां जो सबसे अधिक उन्हें खलता वह था महिलाओं का घुंघट में रहना। वह इस प्रथा का विरोध करने लगीं। सब खिलाफ हुए यह विद्रोही तेवर देखकर पर पति व ससुर उनके साथ थे। उन्होंने नीरू यादव को समझा व उन्हें आगे बढ़ने का हौसला दिया।
जब ठान लिया तो डरना कैसा
क्या लोगों ने उनके सरपंच चुनाव लड़ने का विरोध नहीं किया, इस सवाल पर वह हंसती हैं और खुलकर अपनी बात रखती हैं। नीरू के अनुसार, लोग, समाज ने जो बोला तो बोला, उन्हें तकलीफ इस बात की थी कि अपने रिश्तेदारों ने भी उनके आगे बढ़ने का विरोध किया।
सबसे दुख तो इस बात की हुई कि लोग पढ़ी लिखी महिला के राजनीति में आने का विरोध कर रहे थे। नीरू मानती हैं कि जब तक राजनीति में पढ़े लिखे लोग नहीं आएंगे, हमारा वास्तविक विकास नहीं हो सकता।
तब स्त्री बदल सकती है व्यवस्था
यदि स्त्री जागरुक होगी, अपने अधिकारों को जानेगी, पहल करके आगे बढ़ेगी तो वह हर क्षेत्र में अपनी पहचान बना सकती है। ऐसा मानती हैं नीरू यादव। अपना उदाहरण देते हुए वह कहती हैं कि वह कैसे पढ़ी होने के कारण गांव व समाज के परंपरागत सोच से लड़कर यहां आई हैं।
वह इसलिए आगे बढ़ सकी हैं क्योंकि वह व्यापक तौर पर व्यवस्था को समझ सकती हैं। अपने अधिकारों को पहचानती हैं इसलिए इसके लिए प्रयास कर सकती हैं। उनके अनुसार, यदि अपनी शक्ति का अहसास हो तो हर स्त्री बदल सकती है व्यवस्था और अपना परिवेश।
आलोचनाओं का जवाब काम से
नीरू यादव बताती हैं कि जब घुंघट न करने के कारण रिश्तेदारों ने भला बुरा कहा तो वह परेशान जरूर होतीं। पर पति व ससुर ने उनका साथ दिया तो वह कठिनाइयों को भूलकर आगे बढ़ी। अपना एक वाकया बताते हुए वह कहती हैं कि जब सरपंच पद का शपथ लिया और अगले दिन बिटिया ने जन्म लिया तो लोग यह कहकर आलोचना करने लगे कि अब तो यह काम नहीं कर सकेंगी, बच्ची संभालेंगी।
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काम आया मेहनत व हौसला
बिटिया के जन्म के बाद नीरू यादव को चिकित्सक ने छह माह का बेडरेस्ट बताया। वह परेशान हो रही थीं कि अब कैसे वे काम करेंगी, लोग भी आलोचना कर रहे थे। पर पति का साथ हरकदम मिला। अब वे विचलित हुए बिना अपनी नन्हीं बिटिया को लेकर गांव वालों के बीच जाने लगीं।
दादी सास का भी साथ मिला और नीरू ने सारी आलोचनाओं का मुंहतोड़ जवाब दिया। आज उसी मेहनत और हौसले का परिणाम सामने है कि वह यूएन में भारत की करोड़ो महिलाओं का प्रतिनिधित्व कर सकी हैं और सबकी प्रेरणा बनकर उभरी हैं।
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