Mahatma Gandhi: क्या नाथूराम गोडसे से किसी पार्टी ने कराई गई थी महात्मा गांधी की हत्या ?

Mahatma Gandhi: गांधी जी की हत्या यह पूरी तरह से एक सोची समझी साजिश थी। तो कभी कहा गया कि यह एक पार्टी के इशारे पर कराई गई।

Mahatma Gandhi: आज 30 जनवरी के दिन देश के राष्ट्र पिता महात्मा गांधी ने अंतिम सांस ली थी। आज ही के दिन 76 वर्ष पूर्व साल 1948 की शाम नाथूराम गोडसे ने राष्ट्रपिता महात्मा गांधी के बेहद करीब से तीन गोलियां उनके सीने में उतार दी थी। वो वक्त था जब गांधी भारत के बेहद लोकप्रिय नेताओं में से एक थे। बताते हैं कि जिस वक्त गोडसे ने इस पूरे मामले को अंजाम दिया उस समय बापू दिल्ली में एक प्रार्थना सभा से निकल रहे थे। आज महात्मा गांधी की पुण्यतिथि पर आइए जानते हैं कौन था नाथूराम गोडसे और उसने क्यों की थी राष्ट्रपिता की हत्या…

नाथूराम गोडसे ने की थी गांधी जी की हत्या

महात्मा गांधी को गोलियों से छलनी करने के बाद 38 वर्षीय गोडसे की चारों ओर चर्चा शुरू हो गयी। यह चर्चा दो पक्षों में विभाजित थी। इसमें एक पक्ष ने गोडसे के इस कृत्य को सही ठहराया तो वहीं दूसरे पक्ष ने गोडसे को गलत ठहराया। यह मसला आज भी कायम है। हालांकि, आज के समय में यह आंकड़ा पलट गया है। आज गोडसे के समर्थक अधिक है और विरोधी कम। लेकिन आज भी यह एक विवादित मुद्दे से कम नहीं है।

हिंदू महासभा का सदस्य था नाथूराम गोडसे

38 वर्षीय जोशीला नौजवान नाथूराम गोडसे एक दक्षिणपंथी पार्टी हिंदू महासभा के सदस्य था। जिसका जन्म एक ब्राह्मण परिवार में हुआ था। वह हाईस्कूल की पढाई बीच में ही छोड़ स्वतंत्रता संग्राम की जंग में शामिल हो गया था। बताया जाता है कि गोडसे अपने दो भाईयों के साथ में राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ यानी आरएसएस से जुडा था। इसके बाद उसने कुछ समय के बाद हिंदू राष्ट्रीय दल के नाम से अपना एक अलग संगठन बना लिया और स्वतंत्रता के लिए लड़ना शुरू कर दिया।

पहले गांधी जी का बड़ा समर्थक था गोडसे

इतना ही नहीं समाज में क्रांति लेने के लिए गोडसे ने अपना एक खुद का समाचार पत्र भी निकाला था, जिसका नाम हिंदू राष्ट्र था। बताते हैं कि उसे लिखने का काफी शौक था। उसके अपने समाचार पत्र के अलावा भी कई सारे समाचार पत्रों में उसके लेख प्रकाशित हुआ करते थे। शुरूआत के दौर में गोडसे गांधी का बड़ा समर्थक हुआ करता था। वहीं जब गांधी जी ने नागरिक अवज्ञा आंदोलन की शुरूआत की तो गोडसे न सिर्फ इसका समर्थन किया बल्कि उसने इस आंदोलन में बढ़- चढ़ कर हिस्सा भी लिया था। लेकिन इसके बाद गांधी जी द्वारा अपने “आमरण अनशन” नीति से बार-बार हिंदू हितों का गला घोटने के काम से गोडसे उनके खिलाफ हो गया था और इस नफरत ने ही गोडसे के हाथों गांधी जी की हत्या तक करवा दी थी।

क्यों की थी हत्या, नहीं मिली वजह 

नाथूराम द्वारा गांधी जी की हत्या किए जाने की वजह को लेकर कई सारी थ्योरी दी गयी। इतना ही नहीं न जाने कितनी ही किताबें और लेख इसको लेकर लिखे गए हैं। कोर्ट की कार्यवाहियों में भी इस बात का बार-बार जिक्र हुआ है। लेकिन हत्या के पीछे का मुख्य कारण क्या था, उसका आज तक खुलासा नहीं हो पाया और यह हत्या एक रहस्य बन रह गयी।

क्या किसी पार्टी ने कराई थी गोडसे से हत्या

कभी कहा गया कि गांधी जी की हत्या यह पूरी तरह से एक सोची समझी साजिश थी। तो कभी कहा गया कि यह एक पार्टी के इशारे पर कराई गई। इस वजह को लेकर काफी कुछ लिखा गया लेकिन इस हत्या की वजह कोई ठोस नतीजे पर नहीं पहुंची और रहस्य अधर में लटका रहा गया। वैसे बताते हैं कि गोडसे ने पहले भी कई बार गांधी जी को मारने का प्रयास किया था लेकिन वह इनमें सफल नहीं रह पाया। लेकिन 30 जनवरी 1948 की शाम को यह वो समय था जब गोडसे अपनी योजना में सफल हुआ और बापू का स्वर्गवास हो गया।

महात्मा गांधी की हत्या के संभावित कारण

  • गोडसे का मानना था कि बापू के कारण देश का विभाजन हुआ। उसे यह भी लगता था कि उन्होंने अपनी छवि बनाने के लिए देश का बंटवारा करा दिया।
  • उसका यह भी मानना था कि गांधी जी की नीतियों पर ही सरकार मुस्लिमों का अनुचित रूप से तुष्टिकरण कर रही है।
  • जब उसे पता चला कि जिन्ना ने कश्मीर की समस्या के बावजूद गांधीजी के पाकिस्तान दौरे की सहमति दी तो गोडसे बहुत परेशान हो गया था। उसे लगता था कि यह सब इसलिए हो रहा है क्योंकि गांधीजी मुस्लिमों के प्रति बहुत दयालु है और हिंदुओं की भावनाओं की परवाह नहीं करते हैं। गांधीजी ने खुद कहा था, “वह एक साधु हो सकते हैं लेकिन एक राजनीतिज्ञ नहीं हैं।”
  • कांग्रेस के सदस्यों ने पाकिस्तान को वादे के बावजूद 55 करोड़ रुपये नहीं देने का भी तर्क दिया जाता है। गांधीजी चाहते थे कि कांग्रेस वह निर्णय वापस ले। इसके लिए उन्होंने आमरण अनशन की भी धमकी दी थी और गांधी जी का यह कदम गोडसे को मुस्लिम हित में लगा था।
  • महात्मा गांधी की हत्या के बाद गोडसे को पकड़ लिया गया और उस पर मुकदमा चलाया गया। 8 नवंबर 1949 को पंजाब हाई कोर्ट में उसका ट्रायल हुआ और 15 नवंबर, 1949 को अंबाला जेल में उसे फांसी दे दी गयी थी।

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