Mothers Day 2023 : जीवन भर घर परिवार की हर जिम्मेदारी का बोझ उठाती हैं महिलाएं। मां बनने के बाद तो इनका एक अलग ही रूप सामने आता है। इसके बाद तो ये महिलाएं लगभग पूरा जीवन ही पति, परिवार और बच्चों की खुशियों को समर्पित कर देती हैं। लेकिन इस दौरान कब इनके खुशी का हार्मोन गायब हो जाता है ये जान ही नहीं पातीं और कई प्रकार की मानसिक समस्याओं का शिकार हो जाती हैं।
हरदम रहती हैं परेशान
एक अध्ययन बताता है कि प्रत्येक तीन में से दो माताओं (Mothers Day) को एक मानसिक स्वास्थ्य संबंधी परेशानी हमेशा घेरे रहती है। विज्ञान पत्रिका एडोलसेंट हेल्थ नामक जर्नल में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, किशोरावस्था में मां बनने वाली महिलाएं सबसे ज्यादा मानसिक स्वास्थ्य संबंधी चुनौतियों को झेलती हैं। तो सोचिए जरा अधेड़ और बुजुर्ग होते-होते इनके मानसिक स्वास्थ्य का क्या हाल होगा। शोधकर्ताओं की माने तो ये मानसिक विकार 21 साल से अधिक उम्र की महिलाओं के मुकाबले कम उम्र की महिलाओं में चार गुना ज्यादा होते हैं।
मम्मियों को दोगुनी मानसिक समस्याएं
अध्ययन के मुताबिक, करीब 40 प्रतिशत माताओं को अवसाद, चिंता, तनाव और अतिसक्रियता (हाइपरएक्टिविटी) जैसा कोई एक मानसिक विकार अवश्य ही होता है। यह तो कोरोना से पहले का अध्ययन है। अब देखें तो ये ग्राफ बढ़ता ही जा रहा है। ये भी पाया गया है कि पिता के मुकाबले माताओं को दोगुनी मानसिक समस्याएं होती हैं।
शोधकर्ता कहते हैं कि अभी तक हम यह समझते आए हैं कि माताएं (Mothers Day) केवल प्रसव बाद अवसाद जैसी समस्याओं से जूझती हैं, लेकिन वास्तव में ऐसा नहीं है। कई प्रकार की जिम्मेदारियों की चिंता उनको अवसाद में ले जा सकती है। शोधकर्ताओं का यह भी कहना है कि अध्ययन के निष्कर्षों का उपयोग मानसिक स्वास्थ्य परेशानियों का समय पर चरणबद्ध तरीके से इलाज में मददगार साबित हो सकता है।
तनाव की मुख्य वजह समझें
शोधकर्ताओं के मुताबिक, मां बनने के बाद बच्चे के अच्छे पालन-पोषण, बेहतरीन परवरिश, पढ़ाई-लिखाई और उसके उज्वल भविष्य के लिए मां हरसंभव प्रयास करती हैं। इन कारणों से उसे कई प्रकार के तनाव और मानसिक दबावों से भी गुजरना पड़ता है, जो भविष्य में माताओं के मानसिक स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकता है। धनवंतरी क्षार सूत्र चिकित्सा सेंटर, बागपत की स्त्री रोग विशेषज्ञ डॉ रजनी गोस्वामी बताती हैं कि शुरुआत में तो महिलाओं (Mothers Day) को पारिवारिक तालमेल और बच्चों की चिंता बनी रहती है।
जब वह मेनोपॉज की दहलीज पर आती हैं तो पहले से ही चिंता और तनाव में घिरी होती हैं, मेनोपॉज इसे और बढ़ा देता है। कई प्रकार के हार्मोन स्तर गड़बड़ा जाते हैं और मानसिक विकार और ही ज्यादा बढ़ जाते हैं। उनकी सक्रियता में भी कमी आती है। वह उतना काम भी नहीं कर पातीं जितना परिवार के लोगों को उनसे उम्मीद रहती हैं; इसका भी दबाव महिलाओं पर रहता है और वो पहले से ज्यादा मानसिक रूप से कमजोर हो जाती हैं।
45 के बाद बढ़ता अकेलापन
एक अन्य शोध के मुताबिक, 45 साल की उम्र के बाद मम्मियों में अकेलापन आने लगता है। मासिक धर्म की गड़बड़ी, मेनोपॉज जैसे शारीरिक बदलाव उनकी ऊर्जा को और ही छीन लेते हैं। अधिकतर मम्मियों को मोटापा, मधुमेह, थायराइड, उच्च रक्तचाप, अत्यधिक तनाव (हाइपरटेंशन) जैसी बीमारियां लग जाती हैं। इसका असर उनके मन पर पड़ता है और वे मिजाज परिवर्तन, चिंता, अवसाद का शिकार हो जाती हैं।
खुद भी रखना होगा ख्याल
दरअसल, एक सच्चाई ये भी है कि महिलाओं ने खुद को दूसरों पर इतना निर्भर कर रखा है कि वो अपनी शारीरिक और मानसिक परेशानियों तक के बारे में खुद से कोई कदम नहीं उठा पातीं। यहां तक की हमेशा “समय ही नहीं है, बहुत जिम्मेदारियां हैं” कहकर इसे और बढ़ाती रहती हैं। अब जरूरत है कि माताएं खुद से खुद का चिकित्सक बनें। इसके लिए खानपान में बदलाव, ध्यान, योग, व्यायाम को जीवन का हिस्सा बनाएं। सकारात्मक बातें सुनें, करें और पढ़ें। हमेशा पति और बच्चों से ही उम्मीद न लगाएं कि वो ही आप का ध्यान रखें, राय दें, क्योंकि आखिर में जब आप शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ होंगी तब ही अपने परिवार का भी ठीक प्रकार से ख्याल रख पाएंगी।
बच्चे भी संभाले मां को
मनोवैज्ञानिक इंदु गुप्ता कहती हैं कि मां को अवसाद में गिरने से बचाने के लिए घर-परिवार के साथ-साथ बच्चों को भी आगे आना होगा।
बचाव के यह कदम उठाएं
- अपनी मां के लिए घर का वातावरण सकारात्मक रखने का प्रयास करें।
- भावनात्मक रूप से भी अपनी मां को सहयोग दें।
- घर की सारी जिम्मेदारी केवल मां ही नहीं, बच्चे और परिवार के लोग भी बांटें।
- अपने स्वार्थ के चक्कर में मां को उम्मीदों के बोझ तले न दबाएं, हर काम उनसे कराने की आदत को बदलें।
- मां की भावनाएं, इच्छाएं, जरूरतों और उनके शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को नजरअंदाज न करें
उनका रूटीन चैकअप करवाते रहें।
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