Paithan: पैठण शहर की खूबसूरती पर लटटू हो जाएगा आपका दिल

Paithan: गर्मियों में गन्ने का रस विशेष पेय बन जाता है पर महाराष्‍ट्र के पैठण वालों के लिए यह बेहद खास है। गन्‍ने के रस जहां बिकते हैं उस दुकान को यहां कहा जाता है रसवंतीगृह। आइए चलें इस रंग-बिरंगे शहर की सैर पर।

Paithan: औरंगाबाद में बसा है यह शहर। यदि आप पर्यटनप्रेमी हैं तो इसे देखते ही आप इसके मुरीद हो जाएंगे। यहीं विश्व विरासत अजंता-एलोरा। कई रंग-बिरंगे ऐतिहासिक और सांस्कृतिक शहर बड़ी संख्‍या में बसते हैं इसी शहर के आसपास। गोदावरी नदी के तट पर बसे पैठण की आम पहचान बनी है पैठणी साड़ी से।

बड़ा ही प्राचीन है पैठण

बहती गोदावरी की जलधारा इस शहर को अपने गोद में स्‍नेह से बिठाती है। इस प्राचीन नदी से मिलता-जुलता पैठण का इतिहास भी पुरातन माना जाता है। यूं कहें कि महाराष्ट्र पैठण (Paithan) के बिना अधूरा है तो गलत नहीं। यह छोटा-सा शहर कभी सातवाहन राजवंश की राजधानी रहा है। यह उन प्रमुख द्वीप शहरों में से है, जिनका जिक्र फर्स्ट सेंचुरी ग्रीक बुक ‘पेरिप्लस ऑफ द एरिथ्रियन सी’ में भी आया है।

संतों की भूमि है यह

बता दें कि पैठण (Paithan) को ‘संतों की भूमि’ कहा जाता है। यह स्थान वैष्णववाद के निम्बार्क सम्प्रदाय परंपरा के संस्थापक श्री निम्बार्क का जन्मस्थान है। यहां 20वें जैन तीर्थंकर मुनिसुव्रतनाथ की काले रंग की सुंदर मूर्ति जैन मंदिर में स्थापित है। यह अर्द्धपद्मासन मुद्रा में साढ़े तीन फीट ऊंची मूलनायक प्रतिमा है। यहां हर अमावस्या को यात्रा एवं महामस्तक अभिषेक होता है। यह प्रतिमा राजा खरदूषण द्वारा निर्मित कराई गई है। अन्य मंदिरों में प्रतिमाएं पाषाण या धातुओं की होती है, पर यहां आपको बालू-रेती से बनी प्रतिमा देखने को मिलती है।

युग प्रवर्तक कवि एकनाथ का घर

यह शहर संत एकनाथ महाराज का भी निवास स्थान रहा है। आप उनकी समाधि यहां देख सकते हैं। संत एकनाथ ने मानवता की भावना से प्रेरित होकर अछूतोद्धार का प्रयत्न किया था। वे संत के साथ-साथ कवि भी थे। उन्हें युग प्रवर्तक कवि माना जाता है। वह वरकारी संप्रदाय के संस्थापक रहे हैं। संत ज्ञानेश्वर ने बारहवीं सदी में जन्म लिया और ‘ज्ञानेश्वरी’ लिखा, जिसका पठनीय अनुवाद भी संत एकनाथ ने सोलहवीं शताब्दी में किया।

भनभावन ज्ञानेश्वर उद्यान

यहां ज्ञानेश्वर उद्यान अपनी अनूठी छटा के लिए मशहूर है। उद्यान की सुवासित धरती रंग-बिरंगे फूलों से सजी हुई है। हरे-भरे लंबे घास के मैदान मीलों बिछे गलीचे की तरह नजर आते हैं। उनकी ताजगी और हरियाली बनाए रखने के लिए म्यूजिकल फाउंटेन भी बनाए गए हैं। संगीत की धुन पर फूल जैसे तारों की तरह खिल उठते हैं। अनगिनत संख्या में लगे हरे पेड़ आपकी आंखों को हरा कर देने का जैसे दम भरते नजर आते हैं। यह बाग 125 हेक्टेयर में बना है। माना जाता है कि यह महाराष्ट्र का सबसे बड़ा उद्यान है। इसका नाम संत ज्ञानेश्वर के नाम पर रखा गया है।

धार्मिक पर्यटन के लिए चर्चित

तीर्थाटन के लिए यहां देशभर के लोग आते हैं। पैठण (Paithan) का आदर तीर्थ स्थल के रूप में ज्‍यादा होता है। विदेशी पर्यटक भी यहां खूब आते हैं। धर्म-संस्कृति-सभ्यता-इतिहास के लिए पैठण जैसे उन सबके सामने एक खुली किताब की तरह पेश होता है। यहां गोकुल अष्टमी बड़ी श्रद्धा से मनाई जाती है। दही-हांडी का इंतजार भी पूरे पैठण को साल भर होता है। महादेव के सिद्धेश्वर मंदिर में महाशिवरात्रि पर्व पर खास तौर से यात्रा होती है।

पैठणी साड़ी की पैठ

कहना होगा कि इस छोटे से कस्बेनुमा शहर का दृश्य लहराती पैठणी साड़ी-सा ही खूबसूरत है। वैसे, इस साड़ी को तैयार करने वाले हाथ महाराष्ट्रियन हैं पर पैठणी देश भर का पहनावा है। यह सरहद पार विदेश में भी भेजी जाती है। पैठणी बुनाई की खास पद्धति है। यह कलाकृति है। अनमोल कला है। दिन नहीं, महीनों की साधना होती है इसके निर्माण में। लोग मानते हैं कि पैठणी का हाथ आना गोदावरी नदी का स्पर्श पा जाना है। बता दें कि इस साड़ी को बनाने की प्रेरणा अजंता गुफा में की गई चित्रकारी से मिली थी।

अगर आप यह साड़ी खरीदना चाहते हैं तो ऑर्डर पर साड़ी बनाई भी जाती है। एक साड़ी बनने में महीनों से लेकर साल भर का समय लग जाता है। और हां, इसकी कीमत दस लाख रुपये तक की हो सकती है। एक पैठणी साड़ी की कीमत पांच हजार रुपये से शुरू हो जाती है।

अहा, वह महाराष्ट्रियन स्वाद

गन्ना उत्पादन में महाराष्ट्र भारत में दूसरे स्थान पर आता है। पूरे पैठण (Paithan) की घेराबंदी ही गन्ने के खेतों से है। पर ज्वार की भाकरी यहां खूब शौक से खाई जाती है। शाक-भाजी के अतिरिक्त आप यहां मटन-चिकन का भी आनंद ले सकते हैं, पर यहां मछली सबको पसंद है। गोदावरी नदी की उपज वाम मछली है। रोहू भी आसानी से मिल जाती है। होटल-रेस्तरां-ढाबे आपको इस तालुका में स्वाद की आवभगत में मिल जाएंगे।

कैसे और कब जाएं पैठण?

यहां पहुंचने के लिए सबसे नजदीकी एयरपोर्ट औरंगाबाद शहर में है। आप यहां सभी मौसमों में जा सकते हैं। पर सबसे बेहतर एकनाथ षष्ठी उत्सव का समय है, जिसका आयोजन मार्च के महीने में होता है। यह संत एकनाथ की स्मृति में प्रतिवर्ष आयोजित होता है।

तमाम खबरों के लिए हमें Facebook पर लाइक करें, Twitter और Kooapp पर फॉलो करें। Vidhan News पर विस्तार से पढ़ें ताजा-तरीन खबरें।

- Advertisement -

Related articles

Share article

- Advertisement -

Latest articles