
Bilkis Bano Case: बिलकिस बानो से गैंगरेप और उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या मामले में सोमवार को सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) ने 11 दोषियों को माफी देने के गुजरात सरकार के फैसले को रद्द कर दिया। शीर्ष अदालत ने गुजरात में 2002 के दंगों के दौरान बिलकिस बानो से सामूहिक दुष्कर्म और उनके परिवार के सदस्यों की हत्या के मामले में दोषियों को सजा से छूट देने के राज्य सरकार के फैसले को यह कहकर रद्द कर दिया कि आदेश घिसा पिटा था और इसे बिना सोचे-समझे पारित किया गया था। पीठ को दोषियों दो सप्ताह के अंदर जेल अधिकारियों के समक्ष आत्मसमर्पण करने का निर्देश भी दिया।
सजा में छूट को चुनौती देने वाली जनहित याचिकाओं को सुनवाई योग्य करार देते हुए सुप्रीम कोर्ट ने कहा कि गुजरात सरकार सजा में छ्रट का आदेश देने के लिए उचित सरकार नहीं है। शीर्ष अदालत ने स्पष्ट किया कि एक राज्य जिसमें किसी अपराधी पर मुकदमा चलाया जाता है और सजा सुनाई जाती है, वही दोषियों की माफी याचिका पर निर्णय लेने में सक्षम होता है। दोषियों पर महाराष्ट्र द्वारा मुकदमा चलाया गया था।
शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार से दोषियों की सजा माफी की याचिका पर विचार करने संबंधी एक अन्य पीठ के 13 मई, 2022 के आदेश को अमान्य माना और कहा कि यह अदालत को गुमराह करके और तथ्यों को छिपाकर हासिल किया गया। पीठ ने कहा कि यह एक विशेष मामला है जहां इस अदालत के आदेश का इस्तेमाल सजा में छूट देकर कानून के शासन का उल्लंघन करने के लिए किया गया।
शीर्ष अदालत ने कहा कि अधिकारों का दुरुपयोग कर कानून के शासन का उल्लंघन किया गया है और 13 मई, 2022 के आदेश का इस्तेमाल शक्तियों को हथियाने और कानून की प्रक्रिया का दुरुपयोग करने के लिए किया गया। शीर्ष अदालत ने बानो द्वारा दायर याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर 11 दिन की सुनवाई के बाद पिछले साल 12 अक्टूबर को अपना फैसला सुरक्षित रख लिया था।
क्या है पूरा मामला?
शीर्ष अदालत ने फैसला सुरक्षित रखते हुए केंद्र और गुजरात सरकार को 16 अक्टूबर तक 11 दोषियों की सजा माफी से संबंधित मूल रिकॉर्ड जमा करने का निर्देश दिया था। पिछले साल सितंबर में मामले की सुनवाई करते हुए शीर्ष अदालत ने पूछा था कि क्या दोषियों के पास सजा से माफी मांगने का मौलिक अधिकार है। पहले की दलीलों के दौरान अदालत ने कहा था कि राज्य सरकारों को दोषियों को छूट देने में चयनात्मक रवैया नहीं अपनाना चाहिए और सुधार एवं समाज के साथ फिर से जुड़ने का अवसर हर कैदी को मिलना चाहिए।
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गुजरात सरकार द्वारा दोषियों को दी गई छूट को चुनौती देने वाली बानो द्वारा दायर याचिका के अलावा मार्क्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी (माकपा) नेता सुभाषिनी अली, स्वतंत्र पत्रकार रेवती लौल और लखनऊ विश्वविद्यालय की पूर्व कुलपति रूप रेखा वर्मा सहित कई अन्य ने जनहित याचिकाएं दायर कर इस राहत के खिलाफ चुनौती दी थी। तृणमूल कांग्रेस नेता महुआ मोइत्रा ने भी सजा में छूट और समय से पहले रिहाई के खिलाफ जनहित याचिका दायर की थी।
21 साल की उम्र में दरिंदगी
घटना के वक्त बिनकिस बानो 21 साल की थीं और पांच माह की गर्भवती थीं। बानो से गोधरा ट्रेन में आग लगाए जाने की घटना के बाद भड़के दंगों के दौरान दुष्कर्म किया गया था। दंगों में मारे गए उनके परिवार के 7 सदस्यों में उनकी तीन साल की बेटी भी शामिल थी। गुजरात सरकार ने सभी 11 दोषियों को 15 अगस्त 2022 को सजा में छूट दे दी थी और उन्हें रिहा कर दिया था।
महत्वपूर्ण घटनाक्रम
– 3 मार्च, 2002: अहमदाबाद के पास रंधीकपुर गांव में 21 वर्षीय बिलकिस बानो के परिवार पर हिंसक भीड़ ने हमला किया। महिला के साथ गैंगरेप किया गया। जबकि उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या कर दी गई।
– दिसंबर 2003: सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो के मामले में केंद्रीय जांच ब्यूरो (CBI) से जांच का निर्देश दिया।
– 21 जनवरी, 2008: एक विशेष अदालत ने बिलकिस बानो से बलात्कार और उनके परिवार के 7 सदस्यों की हत्या के मामले में 11 लोगों को दोषी ठहराया और उन्हें उम्रकैद की सजा सुनाई।
– दिसंबर 2016: बॉम्बे हाई कोर्ट ने उम्रकैद की सजा पाए 11 कैदियों की अपील पर फैसला सुरक्षित रखा।
– मई 2017: बॉम्बे हाई कोर्ट ने 11 दोषियों की उम्रकैद की सजा बरकरार रखी।
– 23 अप्रैल, 2019: सुप्रीम कोर्ट ने गुजरात सरकार से बिलकिस बानो को 50 लाख रुपये का मुआवजा देने को कहा।
– 13 मई 2022: शीर्ष अदालत ने गुजरात सरकार को निर्देश दिया कि वह 9 जुलाई 1992 की अपनी नीति के अनुसार समय पूर्व रिहाई के लिए एक दोषी की याचिका पर विचार करे।
– 15 अगस्त, 2022: गुजरात सरकार की माफी नीति के तहत गोधरा उप-कारागार से 11 दोषियों को रिहा किया गया।
– 25 अगस्त, 2022: सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों की समय पूर्व रिहाई के खिलाफ भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (भाकपा) की पूर्व सांसद सुभाषिनी अली, पत्रकार रेवती लौल और प्रोफेसर रूप रेखा वर्मा द्वारा संयुक्त रूप से दायर जनहित याचिका पर केंद्र और गुजरात सरकार को नोटिस जारी किया।
– 30 नवंबर, 2022: बिलकिस बानो ने 11 दोषियों की सजा माफ करने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देते हुए SC का रुख किया और कहा कि उनकी समय पूर्व रिहाई ने समाज की अंतरात्मा को हिला दिया है।
– 17 दिसंबर, 2022: सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो की उस याचिका को खारिज कर दिया जिसमें उन्होंने उससे 13 मई के अपने उस फैसले पर पुनर्विचार का अनुरोध किया था जिसमें शीर्ष अदालत ने कहा था कि गुजरात सरकार सामूहिक बलात्कार और हत्या मामले के एक दोषी द्वारा दायर समय पूर्व रिहाई के आवेदन की जांच करने में सक्षम है।
– 27 मार्च, 2023: बिलकिस बानो की याचिका पर केंद्र, गुजरात सरकार और अन्य को नोटिस जारी किया गया।
– 7 अगस्त, 2023: सुप्रीम कोर्ट ने सजा में छूट देने के गुजरात सरकार के फैसले को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर अंतिम सुनवाई शुरू की।
– 12 अक्टूबर, 2023: सुप्रीम कोर्ट ने बिलकिस बानो द्वारा दायर याचिका सहित अन्य याचिकाओं पर 11 दिन की सुनवाई के बाद अपना फैसला सुरक्षित रखा।
– 08 जनवरी, 2024: शीर्ष अदालत ने 11 दोषियों की सजा माफी रद्द करते हुए कहा कि आदेश घिसा-पिटा है और बिना सोचे-समझे पारित किया गया। सुप्रीम कोर्ट ने दोषियों को दो सप्ताह के भीतर जेल अधिकारियों के समक्ष समर्पण करने का निर्देश दिया।