बूंदी शहर की स्थापना राव देवाजी ने 1242 ई. में की थी। कहा जाता है कि मीणा समाज में एक सरदार हुए थे, जिनका नाम बूंदा मीणा था, उसके नाम पर पड़ा इस शहर का नाम।
इस शहर की स्थापना राव देवाजी ने 1242 ई. में की थी। कहा जाता है कि मीणा समाज में एक सरदार हुए थे, जिनका नाम बूंदा मीणा था, उसके नाम पर पड़ा इस शहर का नाम।
अपनी स्थापत्य कला, अद्भुत चित्रकला शैली, विशाल बावडिय़ों, किलों और झीलों के लिए यह शहर विश्व भर में प्रसिद्ध है।
जयपुर से राजमार्ग 12 से होकर जैसे ही बूंदी शहर में प्रवेश करेंगे आपको मिलेगा तारागढ़ किला। यह किला 'स्टार फोर्ट’ के नाम से भी जाना जाता है।
बूंदी में गढ़ पैलेस के लिए खड़ी चढ़ाई दो मुख्य द्वारों पर समाप्त होती है। इन दो द्वारों में से सबसे लोकप्रिय हाथी पोल है।
बूंदी के नजदीक एक स्थान कंचन धाम गेंडोली है। यहां नदी किनारे सैकड़ों शिवलिंग प्राकृतिक रूप से पाए जाते हैं। इस कारण बूंदी कहलाती है 'छोटी काशी’।
अपनी विशिष्ट चित्रकला शैली के लिए यह शहर विख्यात है, जो इस अंचल में मध्यकाल में विकसित हुई।
यहां लगभग 71 छोटी-बड़ी बावडिय़ां हैं और अगर आसपास के गांवों को जोड़ लिया जाए, तो यह आंकड़ा 300 के पार चला जाता है।
बूंदी शहर के बीचोबीच स्थित 'रानी जी की बावड़ी' की गणना एशिया की सर्वश्रेष्ठ बावडि़य़ों में की जाती है।
यहां बादल महल तारागढ़ किले के भीतर स्थित है, जो अपने सुंदर भित्तिचित्रों के लिए प्रसिद्ध है।
यहां छतर महल से आप शहर का नजारा ले सकते हैं। इसका निर्माण राव छत्रसाल ने सन् 1660 में करवाया था।
बूंदी शहर के बीचोबीच घनी आबादी में स्थित छतरी में कुल 84 खंभे हैं। इसीलिए इसे इसे चौरासी खंभों की छतरी कहा जाता है।
बूंदी शहर में जगह-जगह छतरियां देखने को मिलती हैं। इनमें क्षार बाग एक पुराना पर बेहद सुंदर बाग है। यह शिकार बुर्ज के पास स्थित है।
हर साल नवंबर माह में बूंदी में स्थानीय प्रशासन और राजस्थान टूरिज्म द्वारा बूंदी उत्सव का आयोजन किया जाता है।
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