Life Extension Pills: ऐसा लगता है कि वह समय करीब है जब विज्ञान अमरता के क्षेत्र में भगवान को पीछे छोड़ने की तैयारी कर रहा है। सदियों से इंसान अमरता का सपना देखता आ रहा है, और अब इसे हकीकत में बदलने की कोशिशें तेज हो गई हैं। रिपोर्ट्स के मुताबिक, दुनिया के कुछ सबसे अमीर लोग ऐसी दवाओं और तकनीकों में भारी निवेश कर रहे हैं, जो इंसानी उम्र को बढ़ा सकती हैं या अमरता प्रदान कर सकती हैं।
कौन-कौन कर रहा है निवेश?
जेफ बेजोस और Altos Labs
अमेजन के सीईओ जेफ बेजोस ने अपनी कंपनी Altos Labs में $3 बिलियन का निवेश किया है। यह बायोटेक कंपनी बायोलॉजिकल रीप्रोग्रामिंग तकनीक पर काम कर रही है, जो कोशिकाओं को फिर से जवान बनाने का दावा करती है।
सैम आल्टमैन और Retro BioScience
चैटजीपीटी के निर्माता सैम आल्टमैन ने Retro BioScience में $180 मिलियन लगाए हैं।
पीटर थील और Methuselah Foundation
PayPal के सह-संस्थापक पीटर थील ने Methuselah Foundation में निवेश किया है। यह संगठन उम्र बढ़ाने और बीमारियों को रोकने पर काम कर रहा है।
लैब में बढ़ रही उम्र
लंदन के इम्पीरियल कॉलेज और सिंगापुर के ड्यूक-एनयूएस मेडिकल स्कूल ने हाल ही में एक दवा विकसित की है, जिसने चूहों की उम्र को 25% तक बढ़ा दिया। अगर यह दवा इंसानों पर भी कारगर साबित हुई, तो यह चिकित्सा क्षेत्र की सबसे बड़ी उपलब्धि होगी।
क्या अमरता सिर्फ अमीरों तक सीमित रहेगी?
SmartWater Group के संस्थापक फिल क्लेरी ने चेतावनी दी है कि अगर अमरता की तकनीक केवल अमीरों तक सीमित रही, तो समाज में असमानता और बढ़ जाएगी। उन्होंने इसे “पॉश, प्रिविलेज्ड जॉम्बी” का खेल बताया।
अमरता बनाम भूख और गरीबी
फिल क्लेरी का कहना है कि अरबपति अपनी संपत्ति का इस्तेमाल उन 5 मिलियन बच्चों को बचाने में कर सकते हैं, जो हर साल भूख और इलाज के अभाव में मर जाते हैं।
समाज पर असर
विशेषज्ञों का मानना है कि अमरता की तकनीक से अमीर और ज्यादा अमीर और शक्तिशाली बन जाएंगे, जबकि गरीबों की हालत और खराब हो सकती है।
समाज का ताना-बाना बदलने का खतरा
अगर यह तकनीक केवल अमीरों के लिए उपलब्ध हुई, तो यह समाज के मौजूदा ताने-बाने को पूरी तरह बदल सकती है। इससे सामाजिक असमानता और अन्याय बढ़ने की आशंका है।
क्या अमरता की तकनीक सबके लिए होगी?
अमरता की तकनीक पर काम जारी है, लेकिन यह सवाल अभी भी अनुत्तरित है कि क्या यह तकनीक सभी के लिए सुलभ होगी या केवल चुनिंदा वर्ग तक सीमित रहेगी। इस पर वैज्ञानिकों और सामाजिक विशेषज्ञों के बीच बहस जारी है।
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