Mangalnath Mandir: प्रेम विवाह आजकल आम होता जा रहा है। हर दूसरा तीसरा व्यक्ति अब प्रेम विवाह कर रहा है। मगर, इसके बाद भी कुछ प्रेमी जोड़े विवाह नहीं होने की वजह से अलग हो जाते हैं। ऐसे में प्रेमी जोड़ों के लिए महाकाल की नगरी उज्जैन में बसा मंगलनाथ मंदिर एक वरदान है।
मंगलनाथ मंदिर में विराजिमान हैं शिव (Mangalnath Mandir)
मंगलनाथ मंदिर के गर्भगृह में भगवान शिव, एक शिवलिंग के रूप में स्थापित हैं। वैसे तो सम्पूर्ण उज्जैन ही सनातन ज्ञान का एक महान केंद्र है लेकिन महाकाल मंदिर और मंगलनाथ दोनों ही खगोल अध्ययन के केंद्र भी माने गए हैं। इस मंदिर में भगवान शिव का दिव्य शिवलिंग स्थापित है और यहां देशभर से लोग मंगलग्रह की शांति करवाने आते हैं। मंगल दोष के निवारण के इस इस स्थान पर पूरे वर्ष भात पूजा करवाने वालों का मेला सा लगा रहता है और श्रावण मास में तो यहां विशेष अनुष्ठान पूजन होता है।
शिव रूप में हैं मंगल देव
मान्यता है कि मंगल ग्रह की शांति के लिए दुनिया में ‘मंगलनाथ मंदिर’ से बढ़कर कोई स्थान नहीं है। कर्क रेखा पर स्थित इस मंदिर को देश का नाभि स्थल माना जाता है। मंगल को भगवान शिव और पृथ्वी का पुत्र कहा कहा गया है।। इस कारण इस मंदिर में मंगल की उपासना शिव रूप में भी की जाती है।
मंदिर में दूर होता है मंगल दोष
मंगलनाथ मंदिर में किसी भी तरह के अमंगल को मंगल में बदलने का सामर्थ्य है। यहाँ भारत ही नहीं अपितु विदेशों में रहने वाले लोग भी अपनी कुंडली के मंगल दोष के निवारण के लिए आते हैं। मंगलनाथ मंदिर में पूजा-अर्चना करने से कुंडली में उग्ररूप धारण किया हुआ मंगल शांत हो जाता है। जिन लोगों को ज्योतिषशास्त्र और कर्मकांड में भरोसा है उनके लिए यह मंदिर विशेष महत्व का है। हर मंगलवार के दिन इस मंदिर में श्रद्धालुओं का ताँता लगा रहता है।
दर्शन से होता है प्रेम विवाह
मान्यता है कि मंगलनाथ मंदिर में दर्शन करने से प्रेम विवाह में आने वाली सभी अड़चने दूर हो जाती हैं। वहीं अगर इस मंदिर में प्रेमी जोड़े एक साथ जोड़े में दर्शन करें तो पति-पत्नी होने का वरदान मिल जाता है। इसलिए इस मंदिर में प्रेमी जोड़े अधिक संख्या में आते हैं।
मंगलनाथ मंदिर का इतिहास
मत्स्य पुराण के अनुसार मंगलनाथ ही मंगल का जन्म स्थान माना गया है। कहा जाता है कि अंधकासुर नामक दैत्य को भगवान शिव का वरदान प्राप्त था कि उसके रक्त की बूंदों से सैकड़ों दैत्य जन्म लेंगे। इसी वरदान के चलते अंधकासुर पृथ्वी पर उत्पात मचाने लगा। इस पर सभी ने भगवान शिव से प्रार्थना की। उन्होंने अंधकासुर के अत्याचार से सभी को मुक्त करने के लिए उससे युद्ध करने का निर्णय लिया।
दोनों के बीच भयानक युद्ध हुआ। इस युद्ध में भगवान शिव का पसीना बहने लगा जिसकी गर्मी से धरती फट गई और उससे मंगल का जन्म हुआ। इस नवउत्पन्न मंगल ग्रह ने दैत्य के शरीर से उत्पन्न रक्त की बूंदों को अपने अंदर सोख लिया। इसी कारणवश मंगल का रंग लाल माना गया है।
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