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Parshurameshwar Mahadev Temple: बागपत के इस मंदिर में स्वयं भगवान परशुराम ने स्थापित किया था शिवलिंग, जाने मंदिर से जुड़ा इतिहास

Parshurameshwar Mahadev Temple: सावन के इस पवित्र महीने में बागपत का परशुराम ईश्वर पुरा महादेव मंदिर कावड़ियों के लिए आकर्षण का केंद्र बना है। सावन के इन दिनों इस मंदिर में कावड़ियों का सैलाब उमड़ पड़ा है। दिन चढ़ते-चढ़ते एक से एक आकर्षक कावड़ यहां देखने को मिलते हैं। इस मंदिर में बागपत के साथ गाजियाबाद, मेरठ, मुजफ्फरनगर, दिल्ली और शामली से आए कावड़ियों ने भी महादेव का अभिषेक कर अपनी इच्छा जताई। तो आइए जानते हैं क्या है परशुरामेश्वर पुरा महादेव मंदिर से जुड़ा इतिहास? क्यों है ये इतना खास?

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Parshurameshwar Mahadev Temple
Parshurameshwar Mahadev Temple

यह है मंदिर से जुड़ी मान्यता

मान्यता है कि पहले इस मंदिर के आसपास कजरी वन हुआ करता था। इस वन में जमदग्नि नामक ऋषि अपनी पत्नी रेणुका के साथ आश्रम में रहते थे। एक बार जब राजा सहस्त्रबाहु शिकार करते हुए इनके आश्रम में पहुंचे तो उनकी पत्नी रेणुका ने कामधेनु गाय की कृपा से राजा का आदर सत्कार किया। इसके बाद राजा उस अद्भुत गाय को बलपूर्वक ले जाना चाहते थे पर सफल न होने के कारण गुस्से में रेणुका को हस्तिनापुर महल ले जाकर बंदी बना दिया, परंतु राजा की रानी ने उसे मुक्त करा दिया।

Parshurameshwar Mahadev Temple

भगवान परशुराम जी की शिवलिंग की स्थापना

रेणुका ने वापस आकर जब सारा वृत्तांत ऋषि को सुनाएं तब उन्होंने रेणुका का त्याग कर दिया। जमदग्नि ऋषि के चौथे पुत्र परशुराम ने अपने पिता की आज्ञा को धर्म मानते हुए अपनी माता का सिर धड़ से अलग कर दिया। जब बाद में भगवान परशुराम को पश्चाताप हुआ, तब उन्होंने उस जगह पर शिवलिंग की स्थापना कर महादेव की पूजा करने लगे। उनकी पूजा से प्रसन्न हो महादेव ने वरदान में उनकी माता को जीवित कर दिया और उन्हें एक परशु(फरसा) भी दिया। इसी के थोड़े दिन बाद में भगवान परशुराम ने इसी फरसे से राजा सहस्त्रबाहु को उनकी सेना सहित मार दिया।

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लंढौरा की रानी ने बनवाया शिव मंदिर

मान्यता के अनुसार कई वर्षों बाद भगवान परशुराम द्वारा बनाया यह मंदिर खंडहर में बदल गया। एक बार जब लंडौरा की रानी इधर घूमने निकली तो उनका हाथी उसी जगह आकर रुक गया और वहां से लाख कोशिशों के बाद भी नहीं हिला। बाद में रानी ने सैनिकों से उस स्थान की खुदाई करवाई तो वहां उन्हें शिवलिंग मिला। इसलिए वहीं पर रानी ने मंदिर का पुनः निर्माण करवाया। यही मंदिर आज परशुरामेश्वर मंदिर के नाम से जाना जाता है और इसी पवित्र स्थल पर शंकराचार्य स्वामी कृष्ण बोध आश्रम जी महाराज ने भी अपनी तपस्या की थी।

 

 

(यह ख़बर विधान न्यूज के साथ इंटर्नशिप कर रहे गौरव श्रीवास्तव द्वारा तैयार की गई है।)

 

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