Neem Karoli Baba: उत्तराखंड के नैनीताल में बसा है नीम करोली बाबा का कैंची धाम। इस धाम को लेकर यह मान्यता है कि जो भी यहां सच्चे मन से आता है उसकी सभी मनोकामनाएं पूरी होती हैं। नीम करोली बाबा के भक्तों की लिस्ट में मार्क जुकरबर्ग, स्टीव जॉब्स, अभिनेत्री जूलिया रॉबर्ट्स, विराट कोहली समेत कई देश-विदेश की बड़ी हस्तियां शामिल है। बता दें कि नीम करोली बाबा का असली नाम लक्ष्मी नारायण शर्मा है जिन्हें 20 वीं सदी के महान संतों में गिना जाता है। लोगों का मानना है कि बाबा के पास कई दिव्य शक्तियां थी। नीम करोली बाबा हनुमान जी के बड़े भक्त थे और अपने जीवन काल में उन्होंने हनुमान जी के 108 मंदिर बनवाए। इसीलिए लोग उन्हें हनुमान जी का अवतार भी मानते थे।

कैसा रहा नीम करोली बाबा का जीवनकाल
नीम करोली बाबा का जन्म उत्तर प्रदेश के अकबरपुर में 1900 के लगभग हुआ था। उनके जन्म की तारीख और साल की सही जानकारी किसी को भी नहीं पता। लोग बताते हैं कि 17 साल की ही उम्र में उन्हें ज्ञान प्राप्ति हो गई थी। उनका एक आश्रम वृंदावन में है जबकि मुख्य आश्रम कैंची धाम उत्तराखंड में है जिसकी स्थापना 1964 में उन्होंने की थी। 11 सितंबर 1973 को नीम करोली बाबा ने अपने आश्रम कैंची धाम में समाधि ले ली और उनकी समाधि के पास ही हनुमान जी का मंदिर भी है। नीम करोली बाबा पर रिचर्ड एलपर्ट ने एक किताब भी लिखी है जिसका नाम ‘मिरेकल ऑफ लव’ है। इस किताब में बाबा के जीवन से जुड़ी कई चमत्कारी घटनाओं के बारे में बताया गया है।
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नीम करोली बाबा कि कुछ चमत्कारी घटनाएं
• बताया जाता है कि एक बार नीम करोली बाबा के भंडारे में भी कम पड़ गया जिसके बाद उन्होंने नदी के पानी को लेकर आने को कहा। उस साधारण से नदी के पानी को नीम करोली बाबा ने भी में तब्दील कर दिया था।
• यह भी कहा जाता है कि जब बाबा ने अपने एक भक्त को धूप से परेशान होते देखा तब उन्होंने अपनी चमत्कारी शक्तियों से बादल बुला लिए थे।
• रिचर्ड एलपर्ट ने अपनी किताब में 1943 से जुड़ी एक घटना का जिक्र करते हुए बताया कि एक बार बाबा अचानक एक बुजुर्ग दंपत्ति के घर पहुंच गए और रात को वहीं रुकने का फैसला कर लिया था। बुजुर्ग दंपत्ति बहुत ही गरीब थे फिर भी बाबा ने वही भोजन किया और सोने के लिए एक चारपाई और ओढ़ने के लिए कंबल लेकर सो गए। रात भर बाबा किसी पीड़ा से कराहते रहे और सुबह वो कंबल जिसे ओढ़कर वो सो रहे थे उसे लपेटकर बुजुर्ग दंपत्ति को दे दिया और उसे गंगा में प्रवाहित करने को कहा साथ ही उन्होंने कहा कि ‘इसे खोल कर मत देखना वरना मुसीबत में फस जाओगे और चिंता मत करो तुम्हारा बेटा महीने भर में वापस लौट आएगा’। बुजुर्ग दंपत्ति ने चादर को गंगा में प्रवाहित कर दिया पर उन्हें ऐसा महसूस हो रहा था जैसे चादर में कुछ लोहे जैसा सामान है।
एक महीने बाद उनका बेटा बर्मा फ्रंट से घर वापस लौट आया। वह दंपत्ति का इकलौता बेटा था जो दूसरे विश्व युद्ध के समय ब्रिटिश फौज में सैनिक था और वर्मा फ्रंट में तैनात था। घर आकर उसने बताया की युद्ध के दौरान उसके सभी दोस्त मारे गए और उसके ऊपर भी कई गोलियां दागी गई लेकिन उसे एक भी नहीं लगी। इस घटना के बाद बुजुर्ग दंपत्ति बाबा के चमत्कार को समझ गए। आज भी बाबा की कैंची धाम में उनके भक्त उन्हें कंबल चढ़ाते हैं और बाबा खुद हमेशा कंबल ओढ़ा करते थे।
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कैसे पड़ा बाबा का नीम करोली नाम
एक बार बाबा ट्रेन के फर्स्ट क्लास में सफर कर रहे थे। सफर के दौरान टीटी ने उनसे टिकट मांगा बाबा के पास टिकट ना होने के कारण उन्हें नीब करोली स्टेशन पर उतार दिया। जिसके बाद बाबा वही धरती पर अपना चिपटा गाड़कर बैठ गए। उसके बाद ट्रेन को हरी झंडी मिलने पर भी ट्रेन 1 इंच भी आगे नहीं बढ़ पा रही थी। बहुत कोशिश के बाद जब ट्रेन अपनी जगह से नहीं हिली तब वही के एक लोकल मजिस्ट्रेट ने बाबा के बारे में टीटी को बताया, तब सब ने बाबा को सम्मान पूर्वक उसी डिब्बे में बैठाया जिसके बाद ट्रेन बिना किसी बाधा के चल पड़ी। इसी स्टेशन के नाम पर बाबा का नाम नीम करोली बाबा पड़ा।
(यह ख़बर विधान न्यूज के साथ इंटर्नशिप कर रहे गौरव श्रीवास्तव द्वारा तैयार की गई है)
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