Revolutionary Nazeer Hussain Turned into Actor: बॉलीवुड में गरीबों के स्तर से उठकर महान एक्टर बनने तक के सफर के बारे में अपने सुना होगा। जिसमें अभिनेता अमिताभ बच्चन, शाहरुख खान, इरफान खान, अक्षय कुमार जैसे कई अभिनेताओं के नाम जुबां पर आ जाएंगे। लेकिन क्या आपने किसी ऐसे एक्टर के बारे में सुना है जो एक समय पर देश की आजादी के लिए क्रांतिकारी बना था फिर जेल गया और फांसी की सजा तक हो गई। रिहाई के बाद उस एक्टर का वक्त ऐसा बदला कि भोजपुरी सिनेमा का पितामह बन गया। अपने समय में इस एक्टर ने बॉलीवुड में कई फिल्में की। भोजपुरी सिनेमा की नींव भी इसी एक्टर ने रखी थी। अब तो आपको सेक्टर का नाम समझ में आ गया होगा, अगर नहीं आई जानते हैं वह एक्टर कौन है….
हम बात कर रहें हैं बॉलीवुड में कैरेक्टर आर्टिस्ट के तौर पर खूब नाम कमाने वाले एक्टर नज़ीर हुसैन की। नजीर हुसैन फिल्म जगत के को सितारे हैं, जिनकी वजह से आज भोजपुरी सिनेमा इतना समृद्ध है। नजीर हुसैन ने ही भोजपुरी सिनेमा की शुरूआत की थी। इसलिए नजर हुसैन को भोजपुरी सिनेमा का पितामह कहा जाता है।
क्रांतिकारी थे एक्टर नजीर हुसैन
भोजपुरी फिल्मों से लेकर बॉलीवुड फिल्मों में पिता और बड़े भाई के किरदार में नजर आने वाले नजीर हुसैन कभी क्रांतिकारी हुआ करते थे। बहुत कम लोग जानते होंगे कि फिल्मों में आने से पहले नजीर एक क्रांतिकारी थे, जो जेल तक जा चुके हैं। नजीर पहले ब्रिटिश कंपनी में नौकरी करते थे। मगर जेल से रिहा होने के बाद क्रांतिकारी बन गए थे।
ब्रिटिश आर्मी में की थी नौकरी
नजीर का जन्म 15 मई 1922 को उत्तर प्रदेश के गांव उसिया में हुआ था। इनके पिता का नाम शहबजाद खान था और वे भारतीय रेलवे में गार्ड की नौकरी करते थे। पिता की सिफारिश पर नजीर को भी रेलवे में फायरमैन की सरकारी नौकरी मिल गई थी। लेकिन कुछ महीने बाद नजीर ने नौकरी छोड़कर ब्रिटिश आर्मी जॉइन कर ली।
नौकरी के दौरान ही दूसरा विश्व युद्ध हुआ और नजीर को जंग के मैदान में भेज दिया गया। इनकी पोस्टिंग कुछ समय के लिए सिंगापुर और मलेशिया रही। महौल खराब होने पर नजीर को युद्ध के दौरान बंदी बनाकर मलेशिया जेल में कैद कर लिया गया और फिर कुछ दिनों बाद रिहा करके भारत भेज दिया।
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रिहाई के बाद ज्वॉइन की आजाद हिंद फौज
भारत लौटकर इन्होंने आजाद हिंद फौज जॉइन कर ली। नजीर सुभाष चंद्र बोस से प्रेरित होकर उनके नक्शे कदम पर चलने लगे। प्रचार प्रसार में वे प्रमुखता से भाग लिया करते थे। ऐसे में अंग्रेजों के खिलाफ आवाज उठाने के लिए इन्हें पकड़ लिया गया और फांसी की सजा दे दी गई। लंबे समय तक जब नजीर घर नहीं लौटे तो इनके परिवार ने इन्हें शहीद समझ लिया। एक दफा अंग्रेज नजीर को ट्रेन से हावड़ा से दिल्ली ले जा रहे थे। नजीर ने चुपके से एक पेपर पर अपने सकुशल होने की चिट्ठी लिखी और जैसे ही दिलदारनगर जंक्शन आया खिड़की से कागज फेंक दिया। जिसके बाद उनके घरवालों तक उनकी जानकारी पहुंची।
राष्ट्रपति की सलाह पर बनाई भोजपुरी फिल्में
बिमल राय ने नजीर को फिल्मी दुनिया में इंट्रोड्यूस किया था। इसके बाद बॉलिवुड में नजीर ने ‘परिणीता’, ‘जीवन ज्योति’, ‘मुसाफिर’, ‘अनुराधा’, ‘साहिब बीवी और गुलाम’, ‘नया दौर’, ‘कटी पतंग’, ‘कश्मीर की कली’ जैसी कई फिल्मों में छोटे बड़े किरदार निभाए। भारत के पहले राष्ट्रपति राजेंद्र प्रसाद की 1960 में नजीर से मुलाकात हुई थी। तब उन्होंने नजीर से भोजपुरी सिनेमा की तरफ पहल करने की बात कही थी। इसके बाद नजीर हुसैन 1963 में पहली भोजपुरी फिल्म गंगा मैया तोहे पियरी चढ़ाइबो लेकर आए। इसके बाद से भोजपुरी में कई फिल्में बनने लगीं।
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