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Holi 2025: इस गांव से हुई थी होली की शुरुआत, यहां मौजूद 5000 साल पुराना मंदिर आज भी देता है इस बात की गवाही

Holi 2025: चंद दिनों में होली का त्यौहार है। रंगों का यह त्यौहार दुश्मन को भी दोस्त बना देता है। सभी लोग मिलजुल कर रंग गुलाल उड़ाते हैं। यह सनातन धर्म का एक मुख्य त्यौहार है।

Holi 2025
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Holi 2025: भारत को विविधताओं का देश कहा जाता है। यहां अलग-अलग धर्म संप्रदाय के लोग रहते हैं फिर भी एकता में अनेकता देखने को मिलता है और सभी लोग मिलजुल करते हो हर मानते हैं। होली का त्योहार सनातन धर्म का प्रमुख त्यौहार है और इस दौरान लोग जमकर रंग गुलाल उड़ाते हैं। इस दौरान दुश्मन भी दोस्त बन जाते हैं। लेकिन क्या आप जानते हैं इस रंग-बिरंगे उत्सव की शुरुआत कहां से हुई थी। इस आर्टिकल में हम आपको बताएंगे कि भारत के किस गांव से इस त्यौहार की शुरुआत हुई थी।

यूपी के हरदोई से हुई थी इस त्यौहार की शुरुआत (Holi 2025)

होली का इतिहास बेहद पुराना है और इसको लेकर कई पौराणिक कथाएं सुनने को मिलती है। एकमत है की होली के त्यौहार की शुरुआत उत्तर प्रदेश की हरदोई से हुई थी। यहां स्थित केकड़ी गांव में 5000 साल पुराना नरसिंह भगवान मंदिर प्रहलाद घाट हरिनयकश्यप के महल का खंडहर आज भी इस बात का गवाही देता है। हिरण्यकश्यप की एक राजधानी थी। वह एक राक्षस था और भगवान विष्णु का कट्टर शत्रु था। भगवान विष्णु के भक्तों पर वह जुल्म किया करता था लेकिन उसका बेटा भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु का परम भक्त था.

भक्त प्रहलाद भगवान विष्णु के उपासक थे इस वजह से हिरण्यकश्यप उनकी जान लेना चाहता था लेकिन भगवान विष्णु की दया से प्रहलाद हर बार बच जाते थे। एक बार होली का प्रहलाद को अपने गोद में लेकर आज में बैठ गई लेकिन भगवान के आशीर्वाद से प्रहलाद बच गए और होली का जल गई। इसके बाद होली का त्योहार बनाना स्टार्ट हुआ। लोग बेहद खुश हुए और इस त्यौहार को मनाना शुरू किया।

इस गांव से हुई थी होली की शुरुआत

हरदोई से होली के शुरुआत होने की धार्मिक ग्रंथ और हरदोई गजेटियर में उल्लेख देखने को मिलता है। हरदोई में भगवान विष्णु दो बार अवतार लिए थे। पहले नरसिंह रूप और दूसरा वामन रूप है।

नरसिंह मंदिर है होली का प्रतीक

हरदोई के केकड़ी गांव में 5000 साल से नरसिंह मंदिर है। इस मंदिर में भगवान नरसिंह की मूर्ति है जो बात की गवाही देता है कि इस गांव से होली की शुरुआत हुई थी। समय-समय पर इस मंदिर का जीणोद्धार होता है और आज भी लोग इस मंदिर में सबसे पहले भगवान नरसिंह को रंग चढ़ाते हैं उसके बाद ही होली मनाते हैं।

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