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Munshi Premchand Death Anniversary: यथार्थवादी परंपरा की नींव रखने वाले प्रेमचंद कैसे मुंशी हो गए?

Munshi Premchand Death Anniversary : भारत के महान साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद जिन्दा जमीर के लेखक थे। अपने उपन्यास और कहानियों के जरिए उन्होंने हिंदी साहित्य को नया दिशा दिया।

Munshi Premchand

Munshi Premchand Death Anniversary: उपन्यास और कहानियों के राजा मुंशी प्रेमचंद को हिंदी व उर्दू के महान लेखकों में से एक माना जाता है। शरतचंद्र चट्टोपाध्याय ने मुंशी प्रेमचंद को ‘उपन्यास सम्राट’ कहा था। साहित्‍य में यथार्थवादी परंपरा की नींव रखी थी उन्‍होंने। कहते हैं कि किसी को जानना हो तो उनके शब्‍द काफी हैं। प्रेमचंद को भी लोग उनके कुछ विचारों से जान सकते हैं। जैसे, एक बार उन्‍होंने कहा कि विजयी व्यक्ति स्वभाव से, बहिर्मुखी होता है। पराजय व्यक्ति को अन्तर्मुखी बनाती है। उनके साहित्‍य में ऐसे ही कई कथन, कई उक्तियां, पंक्तियों से आप उन्‍हें अच्‍छी तरह जान सकते हैं। कुछ बातें प्रेमचंद के बारे में।

Munshi Premchand Death Anniversary
Munshi Premchand

वाराणसी जिले में हुआ था मुंशी प्रेमचंद का जन्म

शायद ही कोई मुंशी प्रेमचंद नाम से परिचित ना हो, लेकिन धनपत राय श्रीवास्तव नाम से कई लोग अपरिचित हो सकते हैं।8 अक्टूबर को मुंशी प्रेमचंद की पुण्यतिथि होती है। उनका मुंशी का जन्म 31 जुलाई 1880 को उत्तर प्रदेश के वाराणसी जिले के पास लमही गांव में हुआ था। उनके पिता का नाम अजायब राय था और वह लमही गांव में ही एक डाकघर में मुंशी का काम करते थे।

धनपत राय व नवाब राय 

प्रेमचंद के पिता अजायब राय ने अपने बेटे का नाम धनपत राय रखा था लेकिन बाद में यही धनपत राय पहले नवाब राय और फिर उसके बाद मुंशी प्रेमचंद के नाम से जाने गए। ज्यादातर लोग ये जानते हैं कि उनके पिता डाकघर में बतौर मुंशी के तौर पर कार्य करते थे और इसी कारण प्रेमचंद नाम में मुंशी शब्द जुड़ गया। हालांकि यह बिल्कुल सच नहीं है।

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‘हंस’ नामक अखबार किया काम

मुंशी प्रेमचंद तत्‍कालीन ‘हंस’ नामक अखबार में काम करते थे। रोचक बात यह है कि उनके साथ एक और व्यक्ति जिनका नाम कन्हैया लाल मुंशी था वह भी उसी अखबार में काम करते थे। जब अखबार में संपादकीय छपता था तो दोनों व्यक्तियों का नाम एक साथ छप जाता था।

कई बार अखबार में कन्हैया लाल मुंशी का नाम छपता तो मुंशी के बाद कोमा नहीं लगता था, जिसके वजह से पाठक मुंशी को प्रेमचंद का ही हिस्सा समझ लेते थे और लंबे समय तक यह चलने के कारण पाठक प्रेमचंद को मुंशी प्रेमचंद के नाम से पहचानने लगे।

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