
Electoral Bond: हर तिमाही की शुरुआत में चुनावी बॉन्ड सरकार की ओर से 10 दिनों की पीरिएड के लिए बिक्री के लिए उपलब्ध कराए जाते रहे हैं। इसी बीच उनकी खरीदारी की जाती थी। 2024 के आम चुनावों से पहले इलेक्टोरल बॉन्ड की वैधता पर कल उच्चतम न्यायालय ने अपना निर्णायक फैसला सुनाया है। सुप्रीम कोर्ट चुनाव बॉन्ड को असंवैधानिक बताते हुए इस पर कड़ाई से रोक लगा दी है।
Electoral Bond: इलेक्टोरल या चुनावी बॉन्ड क्या है?
चुनावी बॉन्ड एक प्रकार का वचन पत्र है और इनको खरीदने पर भारतीय स्टेट बैंक की शाखाओं पर किसी भी भारतीय नागरिक की ओर से करी जा सकती है। ये बॉन्ड नागरिक या कॉरपोरेट कंपनियों की तरफ से अपनी च्वाईस के किसी भी राजनीतिक दल को दान करने का एक जरिया है।
चुनावी बॉन्ड का उद्देश्य
चुनावी बॉन्ड की शुरुआत करते हुए सरकार ने ये दावा किया था कि इससे राजनीतिक फंडिंग के मामलों में ट्रासपेरेंसी आएगी और इस बॉन्ड के जरिए अपनी पसंद की पार्टी को चंदा देने में कोई रोक-टोक नहीं है।
चुनावी बॉन्ड वित्तीय तरीका है जिसके जरिए राजनीतिक दलों को चंदा दिया जाता है। इसकी व्यवस्था पहली बार वित्तमंत्री ने 2017-2018 के केंद्रीय बजट में की थी। चुनावी बॉन्ड योजना- 2018 के अनुसार, चुनावी बॉन्ड के तहत एक वचन पत्र जारी किया जाता है, जिसमें धारक को राशि देने का वादा होता है। ADR के अनुसार, इसमें बॉन्ड के खरीदार या भुगतानकर्ता का नाम, स्वामित्व की जानकारी दर्ज नहीं की जाती और इसमें राजनीतिक दल को इसका मालिक माना जाता है।
नागरिक और कंपनियां बॉन्ड के जरिये एक हजार, 10 हजार, एक लाख, 10 लाख और एक करोड़ रुपये के गुणांक में अपनी पसंद की पार्टी को दान दे सकते हैं। इन बॉन्ड को राजनीतिक पार्टियों द्वारा 15 दिनों के भीतर भुनाया जा सकता है। व्यक्ति या तो स्वयं या किसी अन्य व्यक्ति के साथ इन बॉन्ड को खरीद सकता है। मौजूदा समय में व्यक्ति (कंपनियों के लिए) के लिए बॉन्ड खरीदने की कोई सीमा नहीं है और राजनीतिक दल 15 दिनों में बॉन्ड को यूज नहीं करते तो राशि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी राहत कोष में जमा हो जाती है।
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